बॉलीवुड की सबसे आइकॉनिक फिल्मों में से एक है पाकीजा। पाकीजा में एक्ट्रेस थीं ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी और डायरेक्टर थे कमाल अमरोही। कमाल ने इसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। पाकीजा को बनने में भी 18 साल लगे। फिल्म से पहले ही उनका मीना कुमारी से तलाक हो चुका था।
कमाल परफेक्शन के लिए पागल थे। फिल्म का हर फ्रेम उन्हें मुकम्मल चाहिए होता था। 45 साल के करियर में उन्होंने सिर्फ 4 फिल्में डायरेक्ट कीं। अपनी आखिरी फिल्म रजिया सुल्तान के एक सीन के लिए उन्होंने 45 बकरे और 455 मुर्गों की बिरयानी बनवाई थी, क्योंकि सीन शाही दावत का था और वो इसे रियल दिखाना चाहते थे।
कमाल अमरोही गजब के राइटर भी रहे। मुगल-ए-आजम के डायलॉग्स के लिए इन्हें अवॉर्ड भी मिला, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहे मीना कुमारी के साथ अफेयर, शादी और तलाक को लेकर। मीना के लिए कमाल इतने पजेसिव थे कि अपने असिस्टेंट से उन पर नजर रखवाते थे। प्यार की ये सनक ही उन दोनों के रिश्ते में अलगाव का कारण बनी। प्यार से शुरू हुई कहानी आरोप, झगड़े, मारपीट और तलाक पर जाकर खत्म हुई।
कमाल ने तीन शादियां की थीं, लेकिन मीना के लिए उनके दिल में प्यार कुछ अलग ही तरह का था। तलाक हो चुका था, मीना की मौत के भी दो दशक बीत गए थे, लेकिन जब कमाल अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे, तब भी उन्होंने आखिरी ख्वाहिश जताई कि उन्हें मीना की कब्र के बाजू में ही दफनाया जाए।
आज की अनसुनी दास्तानें में टैलेंटेड राइटर, परफैक्शनिस्ट डायरेक्टर कमाल अमरोही की कहानी पढ़िए….
बचपन में मां से कहा था तुम्हारा पल्लू चांदी के सिक्कों से भर दूंगा
सैय्यद आमिर हैदर कमाल नकवी, जिन्हें हिंदी सिनेमा का इतिहास कमाल अमरोही नाम से जानता है। इनका जन्म 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था। ये अमरोहा से थे तो इन्होंने अपना सरनेम पहले अमरोहवी किया और फिर अमरोही। ये उर्दू शायरों के खानदान से ताल्लुक रखते थे।
शायरी और लिखने का गुर इन्हें खानदान से ही मिला था, लेकिन इनके पिता इस पेशे के खिलाफ थे। शरारती इतने थे कि पूरा गांव इनकी बदमाशियों से परेशान रहता था। एक दिन जब मां ने शरारत करने पर डांट लगा दी तो इन्होंने वादा किया कि एक दिन मैं इतना कामयाब बनूंगा कि तुम्हारा पल्लू चांदी के सिक्कों से भरा होगा।
16 की उम्र में बहन के कंगन लेकर लाहौर भाग गए
कमाल राइटर बनना चाहते थे, लेकिन पिता इसके लिए राजी नहीं थे। एक दिन बदमाशियों से परेशान बड़े भाई रजा हैदर ने उन्हें थप्पड़ मारा तो नाराजगी में उन्होंने पहले खुद को कमरे में बंद कर लिया और घर छोड़ दिया। उस समय ये महज 16 साल के थे।
पैसे नहीं थे तो उन्होंने घर से ही बहन के चांदी के कंगन चोरी कर लिए और लाहौर चले गए। लाहौर में अपने रिश्तेदारों की मदद से उन्हें एक लोकल उर्दू मैगजीन में लिखने का मौका मिला। दो साल में इनका काम इतना बेहतरीन हो गया कि मालिक ने खुश होकर उनकी तनख्वाह 300 रुपए कर दी, जो 30 के दशक में काफी बड़ी रकम थी।
नौकरी से अच्छी कमाई होने लगी तो उन्होंने पारसी और उर्दू भाषा में ओरिएंटल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इतना बेहतरीन लिखते थे कि पूरे कॉलेज में उनके चर्चे थे।
खाली डायरी देखकर सुना दी फिल्म की कहानी
उन दिनों के.एल. सहगल भी लाहौर आया-जाया करते थे क्योंकि यहां उनका एक करीबी दोस्त था। एक दिन जब के.एल. सहगल ने उनकी लिखावट देखी तो वो खुश होकर इनको अपने साथ बॉम्बे (अब मुंबई) ले आए। यहां उन्हें उस जमाने के मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी के प्रोडक्शन हाउस मिनर्वा मूवीटोन फिल्म प्रोडक्शन में काम मिल गया।
सोहराब मोदी ने कमाल को अपनी स्क्रिप्ट के साथ ऑफिस बुलाया। इनके पास लिखी हुई स्क्रिप्ट नहीं थी तो वो एक खाली डायरी लेकर ऑफिस पहुंचे, क्योंकि वो जानते थे कि ऐसे ही कहानी सुनाने पर बात नहीं बनेगी। कमाल ने खाली डायरी देखकर ही पूरी कहानी सुना दी, जो सोहराब को काफी पसंद आई। सोहराब ने जब डायरी मांगी तो खाली पन्ने देखकर दंग रह गए। उन्हें कहानी बहुत पसंद आई और 750 रुपए में दोनों के बीच कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ।