कॉस्मिक एस्ट्रो, पिपली (कुरुक्षेत्र) के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मंदिर के पीठाधीश डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि हर साल 13 जनवरी को लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन इस बार सूर्य देव 15 जनवरी 2024 को मकर राशि प्रातः 2 बजकर 43 मिनट में गोचर कर रहे हैं, जिस कारण से इसी दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में लोहड़ी 13 की जगह 14 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। लोहड़ी का पर्व हमेशा मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। 
लोहड़ी का त्यौहार सिर्फ पंजाब, हरियाणा , दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमाचल में ही नहीं अपितु बंगाल तथा उड़िया लोगो द्वारा भी मनाया जाता है I
मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है।
रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए जाते है।
लोहड़ी मनाने के लिए लकड़ियों की ढेरी पर सूखे उपले भी रखे जाते है।
परिवार के सदस्य और जन समूह के साथ लोहड़ी पूजन करने के बाद उसमें तिल, गुड़, रेवडी एवं मूँगफली का भोग लगाया जाता है।
ढोल की थाप के साथ गिद्दा और भाँगड़ा नृत्य इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र होते है।
इसका सम्बन्ध एक मन्नत से जोड़ा गया है अर्थात्‌ जिस घर में नई बहू आई होती है या घर में संतान का जन्म हुआ होता है तो उस परिवार की ओर से खुशी बाँटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है।
सगे-संबंधी और रिश्तेदार उन्हें आज के दिन विशेष सौगात के साथ बधाइयाँ भी देते है।
गोबर के उपलों की माला बनाकर मन्नत पूरी होने की खुशी में लोहड़ी के समय जलती हुई अग्नि में उन्हें भेंट किया जाता है। इसे चर्खा चढ़ाना कहते है।
लोहड़ी एवं मकर सक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है।
आज जहाँ शाम के वक्त लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा के साथ लोहड़ी जलाई जाएगी, वहीं कल प्रातः मकर सक्रांति का स्नान करने के बाद उस आग से हाथ सेकते हुए लोग अपने घरों को आएँगे। इस प्रकार लोहड़ी पर जलाई जाने वाली आग सूर्य के उत्तरायण होने के दिन का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है।
भगवान सूर्य को सम्पूर्ण विश्व में प्रकाश देने के लिए अहोभाव और धन्यवाद भाव भी प्रकट करता है I
इस उत्सव का एक अनोखा ही नजारा होता है। अनेक प्रकार के वाद्य यंत्रों के साथ जब लोहड़ी के गीत शुरू होते हैं तो स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सभी स्वर में स्वर, ताल में ताल मिलाकर नाचने लगते है।
‘ओए, होए, होए, बारह वर्षी खडन गया सी, खडके लेआंदा रेवड़ी..,दुल्ला भट्टी वाला …,’ इस प्रकार के पंजाबी गाने लोहड़ी की खुशी में खूब गाए जाएँगे।

लोहड़ी का ऐतिहासिक महत्व :
लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता है I  लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं की लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता है I

दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था I  उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था I उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेचा जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी की हिन्दू लड़कों से करवाई और उनके शादी के सभी व्यवस्था भी करवाई थी I

दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे I उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित है I वह सभी पंजाबियों का नायक था I

दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का अवतार दिवस भी लोहड़ी को मनाया जाता है।

लोहड़ी का पौराणिक महत्व :

एक प्रचलित लोककथा है कि मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व ‘लाल लाही’ के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।
श्रीमद्भागवदगीता के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपना विराट व अत्यन्त ओजस्वी स्वरूप इसी काल में प्रकट किया था।

लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है।

इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माता -पिता  के घर से ‘त्यौहार ‘ (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता भगवान शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त भी इसमें दिखाई पड़ता है।

लोहड़ी पर्व का आध्यात्मिक रहस्य :

लोहड़ी का सन्धि विच्छेद करे तो लो + हरि  अर्थात अपने जीवन की सभी चिन्ताओं और कमजोरियों को भगवान हरि को समर्पित कर देना तथा अग्नि के समान योगाग्नि से अपनी आत्मा रूपी ज्योति को परम ज्योति परमात्मा से एकीकार करना और अपनी आत्मा को को दिव्य गुणों व शक्तियों से भर लेना I ऐसे कर्म करना जिससे समस्त संसार का कल्याण हो I

लोहड़ी का ज्योतिष शास्त्रों अनुसार महत्व : हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी जनवरी मास में संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाई जाती है। इस समय धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है। यह अवसर वर्ष के सर्वाधिक शीतमय मास जनवरी में होता है। इस प्रकार शीत प्रकोप का यह अन्तिम मास होता है। पौष मास समाप्त होता है तथा माघ महीने के शुभारम्भ उत्तरायण काल का संकेत देता है।

हिन्दू इस अवसर पर गंगा में स्नान कर अपने सभी पाप त्यागते हैं। गंगासागर में इन दिनों स्नानार्थियों की अपार भीड़ उमड़ती है। उत्तरायणकाल की महत्ता का वर्णन हमारे शास्त्रकारों ने अनेक ग्रन्थों में किया है। लोहड़ी का उत्सव किसानो के लिए नई फसल  आने के लिए महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार शहरों में लोग इसे मेलजोल तथा परिवार और दोस्तों से एक जुटता का प्रतीक मानते हैI इस पर्व का एक यह भी महत्व है कि बड़े-बुजुर्गों के साथ उत्सव मनाते हुए नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पुरानी मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों का ज्ञान प्राप्त कर लेते है, ताकि भविष्य में भी पीढ़ी दर पीढ़ी उत्सव चलता ही रहे। श्रेष्ठ संतान का कर्तव्य है कि प्रतिदिन माता -पिता और बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करे और उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करे I

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