स्वतंत्रता दिवस पर स्कूल की तरफ से किया एकता की दौड़ का आयोजन,  48 कोस तीर्थ के चेयरमैन मदन मोहन छाबडा  ने हरी झंडी देकर किया रवाना, 250  विद्यार्थियों व 100 स्टाफ के सदस्यों ने दिखाया जोश

कुरुक्षेत्र,15 अगस्त।

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में मेरी माटी मेरा देश अभियान को लेकर सैंट थामस स्कूल की तरफ से स्वतंत्रता दिवस पर ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर एकता की दौड़ का आयोजन किया गया। इस एकता की दौड़ में स्कूल के 250 विद्यार्थियों व 100 स्टाफ के सदस्यों ने बड़े जोश के साथ भाग लिया।

स्वंतत्रता दिवस को लेकर सैंट थामस स्कूल की तरफ से आयोजित एकता की दौड़ को चेयरमैन 48 कोस तीर्थ मदन मोहन छाबडा ने हरी झंडी देकर रवाना किया। इससे पहले चेयरमैन मदन मोहन छाबडा, स्कूल के चेयरमैन संदीप मारवाह, अंजलि मारवाह, कार्तिकेय, साक्षी मारवाह, स्कूल की प्रिंसीपल आरती सूरी, स्कूल कोरडिनेटर रजनी ने दीप प्रज्ज्वलित करके विधिवत रूप से कार्यक्रम का आगाज किया। इस एकता की दौड़ शमिल विद्यार्थियों व स्टाफ के सदस्यों ने ब्रह्मसरोवर की पगडण्डी पर दौड़ लगाई। इस दौरान विद्यार्थियों ने रंगा रंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देकर सबको तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। इसके उपरांत सभी स्कूल की तरफ से मिठाईयां भी बांटी गई।

स्कूल के चेयरमैन संदीप मारवाह व अंजलि मारवाह ने स्वतंत्रता दिवस का संदेश देते हुए कहा कि मातृभूमि के वीर सपूतों के बलिदानों से 1947 में 15 अगस्त के दिन आजाद भारत के नवीन इतिहास की रचना हुई थी, जिसका गायन युगों-युगों तक होता रहेगा। स्वाधीनता की इस लड़ाई में स्वयं को बलिदान करने वाले शूरवीरों व देश की सरहदों पर शहीद होने वाले सैनिकों को मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं तथा स्वतंत्रता सेनानियों, पूर्व सैनिकों एवं उनके परिजनों को नमन करता हूं।

उन्होने 77वें स्वतंत्रता दिवस समारोह की शुभकामनाएं भी दी। उन्होंने कहा कि आजादी बड़ा  ही प्यारा शब्द है इस शब्द का ख्याल आते ही मन में जो भाव उत्पन्न होता है उसे शब्दों में व्यक्त करना नामुमकिन है यह जताने की नहीं बल्कि महसूस करने की चीज है और इसे वही व्यक्ति या प्राणी महसूस कर सकता है जिसने कभी ना कभी किसी न किसी रूप में गुलामी का दंश झेला हो।

उन्होंने कहा कि लाखों सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देशवासियों को आजादी की खुली हवा में सांस लेने का सुनहरी अवसर दिया। देश को आजाद करवाने में अनेक शूरवीरो ने अपना बलिदान दिया। उस समय हमारी आंखों के सामने एक ऐसे समृद्ध भारत की कल्पना तैर रही थी, जहां प्रत्येक नागरिक सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक तौर पर भी सबल हो। दुनिया की इस प्राचीनतम सांस्कृतिक भूमि भारत की आजादी का आज हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं

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