कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के अध्यक्ष ज्योतिष व वास्तु विशेषज्ञ डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा का विधान है। इसीलिए इस तिथि को अहोई अष्टमी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन भारतीय महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। इस बार विशेष सौभाग्यदायक गुरुपुष्य के साथ को गुरुवार ,24 अक्तूबर 2024 को अहोई अष्टमी है।
अहोई अष्टमी पूजा करने की विशेष विधि और शुभ मुहूर्त :
करवा चौथ की तरह इस व्रत में भी महिलाओं को सुबह उठकर स्नान करना चाहिए। स्वच्छ वस्त्र धारण कर मिट्टी के मटके में पानी भरना चाहिए। पूरे दिन कुछ खाएं नहीं और अहोई माता का ध्यान करें। बालक की उम्र के अनुसार उतने ही चांदी के मोती धागे में डालें और पूजा में रखें। शाम को अहोई माता की पूजा होती है और उन्हें भोग लगाया जाता है। भोग में पूरी, हलवा, चना आदि होता है। इस व्रत को तारे देखने के बाद खोला जाता है। इसमें भी बायना निकालकर सास, ननद या जेठानी को दिया जाता है। अहोई माता की माला को दीवाली तक गले में पहनना होता है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। इस दिन महिलाएं तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। पूजा में श्रद्धा और समर्पण भाव मुख्य है। मां भक्तों की भावना अनुसार फल प्रदान करती है।
अहोई अष्टमी के दिन 24 अक्टूबर को पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5:42 से 7:00 बजे तक है। इस समय व्रत की कथा सुनकर महिलाएं माता अहोई की पूजा करें। इसके बाद तारे निकलने पर उन्हें जल का अर्घ्य प्रदान करें और फिर भोजन करके व्रत का समापन करें।
अहोई माता की पूजा करने के लिए गाय के घी में हल्दी मिलाकर दीपक तैयार करें, चंदन की धूप करें। देवी पर रोली, हल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान देने से शुभ फल मिलता है। वहीं, जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए महादेवी पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। यथा संभव गरीबों को दान दें या भोजन कराएं।