चंडीगढ़- शनिवार 5 अक्टूबर हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर मतदाताओं द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) मार्फ़त वोट डाले जायेंगे जिसके साथ वी.वी.पैट. (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) सिस्टम का भी प्रयोग किया जाएगा.
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट एडवोकेट हेमंत कुमार ( 9416887788) ने बताया कि वैसे तो गत 20 वर्षो से ऊपर समय से ई.वी.एम. द्वारा मतदान (वोटिंग) की व्यवस्था लागू है हालांकि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ही मतदान में ई.वी.एम. के साथ वी.वी.पैट के प्रयोग को अनिवार्य घोषित किया था. अप्रैल- मई 2019 में 17वीं लोकसभा आम चुनाव के बाद से देश में सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावो में ईवीएम के साथ वी.वी.पैट का प्रयोग किया जाता है.
उन्होंने आगे बताया कि अब प्रश्न यह उठता है कि अगर किसी मतदाता द्वारा ई.वी.एम. पर बटन दबाकर किसी उम्मीदवार को डाले गए वोट एवं इसके बाद वी.वी.पैट. में उम्मीदवार के विवरण सम्बन्धी निकली पर्ची में फर्क या अंतर पाया जाता है तो इस स्थिति में क्या होगा. ऐसी परिस्थिति में चुनाव संचालन नियमावली , 1961 के नियम 49 एम.ए. अनुसार उस वोटर को उस पोलिंग बूथ/स्टेशन के प्रीसाइडिंग ऑफिसर को इस सम्बन्ध में इस बारे में सूचित करना होगा एवं इसके बाद वह अधिकारी उस वोटर को गलत सूचना देने पर गंभीर कानूनी परिणाम भुगतने की बात बताने के बाद उससे एक लिखित घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लेगा.
हेमंत ने बताया कि ऐसी लिखित घोषणा का प्रारूप भारतीय चुनाव आयोग द्वारा नवंबर, 2013 में जारी कर दिया गया था जिसमे उल्लेख होता है की गलत सूचना देने पर उक्त वोटर को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 212 (किसी सरकारी अधिकारी को झूठी सूचना देना) के अंतर्गत उसे अधिकतम 6 महीने की जेल अथवा एक हज़ार रुपए का जुर्मान या दोनों हो सकते है.
हेमंत ने बताया कि अगर वोटर ऐसी लिखित घोषणा दे देता है, तो इसके बाद मतदान केंद्र का प्रीसाइडिंग ऑफिसर फॉर्म 17 ए में उस मतदाता के नाम से समक्ष दूसरी एंट्री करने के बाद उस वोटर से उसी ई.वी.एम. एवं वी.वी.पैट पर एक टेस्ट वोट करवाएगा जोकि प्रीसाइडिंग ऑफिसर एवं वहां मौजूद उम्मीदवारों अथवा उनके पोलिंग एजेंटो के उपस्थिति में होगी. इस टैस्ट वोट में वोटर द्वारा डाली गई वोट एवं उसके साथ उत्पन्न हुई वी.वी.पैट की पर्ची का निरीक्षण किया जाएगा. अगर वोटर द्वारा ई.वी.एम. से दी गई वोट एवं वी.वी पैट में आये अंतर की बात उस टेस्ट वोट में साबित हो जाती है, तो प्रीसाइडिंग ऑफिसर तत्काल संबंधित विधानसभा क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर को सूचित करेगा एवं उस वोटिंग मशीन से मतदान रुकवा दिया जाएगा एवं रिट्रनिंग ऑफिसर के आदेशों के अनुसार आगामी कार्यवाही करेगा.
हेमंत ने बताया कि इसी वर्ष 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय में उपरोक्त नियम 49 एम.ए. में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया जिससे इसकी वैधता कायम है. इस नियम के अंतर्गत ई.वी.एम. से डाले गए वोट एवं उसके साथ संलग्न वी.वी.पैट. से उत्पन्न हुई कागज़ की पर्ची में अंतर आने की झूठी आपत्ति उठाने वाले वोटर पर कानूनी केस (अभियोजन) चलाया जा सकता
है. कोर्ट से यह भी गुहार की गयी थी जब आपत्ति उठाने वाला वोटर टेस्ट वोट डालता है तो वह गुप्त नहीं होती है क्योंकि वह वोट प्रीसाइडिंग ऑफिसर और पोलिंग एजेंट के समक्ष डाली जाती है एवं अगर उस टेस्ट वोट में ई.वी.एम. से डाले गए वोट एवं वी.वी.पैट. से उत्पन्न पर्ची में मिलान हो जाता है, तो इसी सबूत को उस वोटर के विरूद्ध प्रयोग किया जा सकता है जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3 ) का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को स्वयं के विरूद्ध ही सबूत देने को बाधित नहीं किया जा सकता है. हालांकि एडवोकेट हेमंत का कहना है कि भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.) की धारा 212 संज्ञेय अपराध नहीं है अर्थात इसमें पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती एवं यह जमानती अपराध भी है.