विश्व की सभी चिकित्सा पद्धतियां औषधि प्रयोग निगरानी के बिना सुरक्षित नहीं- प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान

श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान के पेरीफेरल फार्माकोविजिलेंस सेंटर द्वारा शुक्रवार को गीता ज्ञान संस्थानों में एक दिवसीय आयुष में फार्माकोविजिलेंस के बारे में जागरूकता पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अरुण त्रिपाठी व वशिष्ठ अतिथि होशियारपुर, गुरु रविदास यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डॉ संजय गोयल रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो वैद्य करतार सिंह धीमान ने की। कार्यशाला का शुभारंभ अष्टाध्यायी गीता पाठ एवं भगवान धन्वंतरि के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। गणमान्य अतिथि एवं वक्ताओं का परिचय एवं स्वागत रिसर्च एंड इनोवेशन विभाग के डायरेक्टर एवं द्रव्यगुणा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अनिल शर्मा ने किया। इस कार्यशाला में हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के लगभग चार सौ प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस अवसर पर मुख्यातिथि डॉ अरुण त्रिपाठी ने वर्तमान दौर में आयुर्वेदिक मेडिसिन के बहुउपयोगी लाभ और उनके दुष्परिणामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति शास्त्रीय मानदंडों पर आधारित है, वहीं फार्माकोविजिलेंस आयुर्वेद में एक नई अवधारणा है, जिसमें आयुर्वेदिक दवाइयों के दुष्परिणामों रिपोर्टिंग की जाती है। आज मार्केट में पेटेंट आधारित बहुत सारी मेडिसिन मौजूद है, जिनके दुष्परिणाम हो सकते हैं। इसलिए उसकी निगरानी बहुत जरूरी है। इसके साथ ही आयुर्वेदिक डॉक्टरों को भी महत्वपूर्ण भूमिका में रहना होगा ताकि किसी भी रोगी को नुकसान न पहुंचे। वशिष्ठ अतिथि डॉ. संजीव गोयल ने कहा कि पिछले चार-पांच साल के अंदर फार्माकोविजिलेंस सेंटर के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाइयों के नाम पर भ्रामक विज्ञापन के प्रचार-प्रसार द्वारा देश के नागरिकों को गुमराह करने वालों पर आवश्यक कार्रवाई हुई है। भारत में एमबीबीएस के मुकाबले दस प्रतिशत विद्यार्थी ही आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में दाखिला लेते है, निसंदेह आने वाला वक्त आयुर्वेद का होगा मगर पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से काम करने की जरूरत है। कार्यक्रम के अध्यक्ष आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि किसी व्यक्ति की सार्थकता उसकी उपयोगिता और निरापद्ता पर निर्भर करती हैं, गुणवाता, सुरक्षा और प्रभावकारिता व्यक्ति को लम्बा समय तक समर्थ बनाती है। अगर आयुर्वेद मेडिसिन अच्छी है, उसके कोई दुष्परिणाम नहीं है, तो हर बार प्रमाण से क्यों डरना। उन्होंने कहा कि हर वस्तु की क्रिया होगी, तो निश्चित है उसकी प्रतिक्रिया भी होगी। विश्व में कितनी भी चिकित्सा है अगर उसकी निगरानी नहीं है तो वह सुरक्षित नहीं हो सकती। मेडिसिन की प्रभाव व दुष्परिणाम की जिम्मेदारी डॉक्टरों की और उनकी जो उस क्षेत्र में कार्यरत है उन सब की बनती है। दिनभर चली कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा फार्माकोविजिलेंस की कार्यप्रणाली और भ्रामक विज्ञापन के प्रचार-प्रसार के प्रति लोगो को कैसे जागरूक किया जाए इसकी जानकारी दी गई। जिसमे एनआईए जयपुर से एसोसिएट प्रो. डॉ सुदीपत कुमार, दिल्ली से सीसीआरएएस के डायरेक्टर जनरल डॉ रवि नारायण, एनपीवीसी के को-कोऑर्डिनेटर डॉ गालिब, कंज्यूमर इंडिया की अध्यक्षा डॉ जया श्री गुप्ता और रोहतक के पंडित भगवत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के फार्माकोलॉजी विभाग की प्रो. सविता वर्मा विशेषज्ञ के तौर पर मौजूद रही। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ देवेंद्र खुराना, डॉ जेके पांडा, डॉ आशीष मेहता, डॉ सुरेंद्र सेहरावत, व अन्य सभी चिकित्सक और प्राध्यापक मौदूद रहे। डॉ. सत्येंद्र सांगवान, इंद्र प्रताप, अरविंद कुमार ने इस कार्यशाला के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई।

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