कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि महाशिवरात्रि को भगवान शिव के जन्म महोत्सव का दिन बताया गया है,मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी कारण से इस दिन विशेष शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है। भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था I
महाशिवरात्रि का महत्व :
डॉ.सुरेश मिश्रा ने बताया चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं ।इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में, महाशिवरात्रि व्रत, पूजा, कथा और उपायों का विशेष महत्व होता है। इस बार महाशिवरात्रि शुक्रवार 8 मार्च 2024 को धनिष्ठा नक्षत्र और शिव योग मनाई जाएगी !
आध्यात्मिक महत्त्व :
ओशोधारा संस्थान ,मुरथल के संस्थापक समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया जी बताते है कि प्रथम धर्म चक्र का प्रवर्तन आज से 10000 साल पहले भगवान शिव ने किया I सनातन धर्म के मुख्य प्रवर्तक भगवान शिव है I सनातन धर्म मानता है कि भगवान शिव आदि गुरु है ,आदियोगी है उन्होंने सनातन धर्म का चक्र का प्रवर्तन किया I इसके 2500 साल बाद भगवान राम आए I दूसरे धर्म चक्र का प्रवर्तन भगवान राम ने किया ,यह भी 2500 साल तक चला I इसके बाद भगवान कृष्ण आए उन्होंने धर्म का चक्र का प्रवर्तन किया I जो 2500 साल तक जीवंत रूप में चला I इसके बाद भगवान बुद्ध आए उन्होंने एक नए धर्म का चक्र का प्रवर्तन किया I जो 2500 साल तक जीवंत रूप में चला I आधुनिक काल में ओशो आए I उन्होंने एक धर्म का चक्र का प्रवर्तन किया I जो जीवंत रूप में आगे 2500 साल तक चलने वाला है I ओशोधारा में ओंकार की साधना ध्यान योग प्रथम तल के कार्यक्रम में साधकों को दी जाती है I समर्थगुरु कहते है कि मानो मत जानो I पूरा सद्गुरु ही आत्म ज्ञान ,परमात्म ज्ञान और ब्रह्म ज्ञान का अनुभव करवा सकता है I गुरु नानक जी कहते है कि नानक नाम जहाज है ,चढ़े सो उतरे पार I
भगवान शिव स्वयं भी ध्यान और समाधि में लीन रहते हैं, और माता पार्वती को कहते हुए उन्होंने ध्यान और अध्यात्म के सूत्र दिए हैं। भगवान शिव के इन सूत्रों की सनातन धर्म के प्रस्तोता परम गुरु ओशो ने अपनी प्रवचनमाला ‘शिव सूत्र’ और ‘तंत्र सूत्र’ में बहुत सुन्दर व्याख्या की है। भगवान शिव का जीवन सन्यासी और साधक दोनों के लिए प्रेरणादायक और आदर्श है। भगवान शिव सन्यस्त हैं, दो बच्चे हैं, कुछ छोड़कर भी नही भागे हैं ,श्रृष्टि के संचालन में भी त्रिदेवो के साथ अपना उत्तरदायित्व निभाते रहे हैं। साधक के लिए वह स्वयं ही शास्त्र हैं I कैलाश भीतर सहस्रार चक्र का प्रतीक है और मानसरोवर भीतर के निराकार का प्रतीक है जो संत ध्यान और समाधि में डूबकर भीतर निराकार मानसरोवर में लीन रहते हैं उनको हमने परमहंस कहा है। माता पार्वती श्रद्धा की मूर्ति हैं। नंदी बैल है जो मन का प्रतीक है और इस मन के नंदी पर भगवान शिव सवार हैं। वासुकी सर्प कुंडली का प्रतीक है और शिवनेत्र ध्यान का प्रतीक है। भांग भीतर की खुमारी का प्रतीक है। नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात। तांडव उनके उत्सव और उनकी मस्ती का प्रतीक है। भगवान शिव का डमरू उस अनहद के संगीत का प्रतीक है जो दिन रात हमारी चेतना और इस ब्रह्मांड में गूँज रहा है और चंद्रमा आत्मा के प्रकाश को इंगित कर रहा है। मृगछाला और बभूत शिव के वैराग्य की उद्घोषक हैं। जटा जूट उनके तप का प्रमाण हैं और त्रिशूल उनकी शक्ति का घोतक है लेकिन भगवान शिव केवल शक्तिशाली ही नही हैं उनकी करुणा भी अपरंपार है, जगत के कल्याण के लिए वह विष तक पी गए। भगवान शिव जिस अमृत को पी रहे हैं गंगा इसका प्रतीक हैं।
भगवान शिव की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें ।
यज्ञोपवीत धारण कर शरीर शुद्ध करें, तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें।
पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षा दीप प्रज्ज्वलित कर लें
इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।
इसके बाद हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।
महाशिवरात्रि व्रत कैसे करें ?
1. सारा दिन निराहार रहें ,मन वचन कर्म से पवित्र रहे।
2. शाम से ही भगवान शिव की पूजा के लिए संपूर्ण सामग्री तैयार करें।
3.रात को भगवान शिव की चार प्रहर की पूजा बड़े भाव से करने का विधान है।
4. प्रत्येक प्रहर की पूजा के पश्चात अगले प्रहर की पूजा में मंत्रों का जाप दोगुना, तीन गुना और चार गुना करें।
5. किसी की निंदा चुगलियों ,ईर्ष्या द्वेष से बचें। शुभ मङ्गल भावना सम्पूर्ण विश्व के लिए रखें।
भक्त जन इस मंत्र का श्रद्धा पूर्ण जाप करें : ॐ शिवाय: नमः , ॐ ईशानाय नम: ,