कुरुक्षेत्र, 18 दिसम्बर। जीवन में कामयाब होना है तो हर परिस्थिति में अपनी संस्कृति, परंपरा व रीति-रिवाज से जुड़े रहना अत्यंत आवश्यक है। इस विषय पर कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा के मार्गदर्शन तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय व कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में हरियाणा पवेलियन अपनी चमक गीता जयंती समारोह में बिखेर रहा है। हरियाणा की संस्कृति को देखने के लिए लोगों की अपार भीड़ उमड़ रही है।
महोत्सव के दूसरे दिन हरियाणा पवेलियन में युवा हरियाणवी लोकगीतों पर खूब झूमे। प्रोफेसर महासिंह पूनिया ने कहा कि युवाओं को अपनी संस्कृति से जुड़े रहना चाहिए यह पगड़ी वाले बुजुर्ग ढूंढते रह जाओगे। हमें अपनी बुजुर्गों का मान सम्मान करना चाहिए। दर्शकों का जहां मनोरंजन किया जा रहा था वहीं उन्हें हरियाणा की प्राचीन लोक विधाओं से रूबरू भी कराया गया।
डॉ. हरविंदर राणा व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए रंगारंग कार्यक्रमों ने पूरा दिन दर्शकों को बांधे रखा। हरियाणवी कलाकार सूरज बेदी ने खास तौर पर जिन विधाओं में गायन शैली की पहले उनके बारे में विस्तार से बताया और फिर लोगों का मनोरंजन किया।
हरियाणवी लोक गायक सूरज बेदी ने गांव बदनारा के पंडित रामेश्वर दत्त के लोक भजनों के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि पंडित रामेश्वर दत्त ने समाज में पहली बुराइयों कुरीतियों की समितियां और पाखंडों के खिलाफ भजन लिखे और गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया। हरविंदर राणा ने यह देश वीर जवानों का, चुनरी जयपुर से मंगवा, दामन के नीचे पहरी जूती य, गजबन छोरी, सासु ना खोलया संदूक यार तेरा चेतक पर चले, तेरी आंखों का काजल सहित हरियाणा के प्रसिद्ध लोकगीतों पर लोगों का खूब मनोरंजन किया और वहां पर उपस्थित लोग खूब झूमे। हरियाणा पैवेलियन में लगे प्रत्येक स्टाल पर पूरा दिन पूरा भीड़ रही। लोगों ने जहां पूरा दिन हरियाणा की समृद्ध लोक संस्कृति को देखा वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उठाने के साथ-साथ हरियाणवी व्यंजनों का स्वाद भी चखा।
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कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा व कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा ने भी ली सेल्फी
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग द्वारा आयोजित हरियाणा पैवेलियन के मुख्य द्वार पर लगे म्हारा हरियाणा सेल्फी प्वाइंट पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा व कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा ने अपनी सेल्फी ली। यहीं नहीं पैवेलियन में बने विभिन्न सेल्फी प्वाइंटों पर लोगों में सेल्फी लेने का भारी उत्साह देखने को मिला। हर व्यक्ति अपनी सेल्फी लेना चाहता है।
हरियाणा की बुणाई कला को उजागर कर रहा है हरियाणा पैवेलियन
चारपाई, पीढ़ा, खटौला बुणाई कर रहे हैं कारीगर
कुरुक्षेत्र, 18 दिसम्बर। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा के मार्गदर्शन में युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग द्वारा आयोजित हरियाणा पैवेलियन हरियाणा की लोक संस्कृति के साथ-साथ हरियाणवी लोक कला बुणाई को भी पर्यटकों तक पहुंचा रहा है। यहां पर खाट बुणाई, पीढ़ा बुणाई तथा खटौला बुणाई की स्टॉल पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बन रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का हमेशा यह प्रयास रहता है कि हरियाणवी संस्कृति का अधिक से अधिक विकास व विस्तार हो। इसके विषय में हरियाणा पैवेलियन के संयोजक प्रो. महासिंह पूनिया ने विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि बुणाई कला हरियाणवी लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, आवश्यकता है इसके इतिहास को संरक्षित करने की। हरियणा की लोक विरासत को ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों तक पहुंचाने का कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का हमेशा ही प्रयास रहता है। उन्होंने बताया कि लोकजीवन में खाट, पीढ़ा, खटौला, खटिया, चारपाई के अनेक स्वरूप देखने को मिलते हैं। खटौला, पलंग, मचान, माचा, डहला, दहला, मंजी-मंजा, सेज सभी चारपाई के ही अलग-अलग स्वरूप हैं। देहात में खाट को कुत्तामूतणी, चर्रमर्री, नसकट, सबरलील, ओणचण, कैंकची, टूटी खाट, मूंदी खाट, बांगी खाट, सणी की खाट, मूंज की खाट, सूत की खाट, सण की खाट, छोटी खाट, बड़ी खाट, मंझौली खाट आदि नामों से भी जाना जाता है। खाट के चौंक के चारों ओर अनेक प्रकार की लहरें ड़ालकर की गई भराई लहरिया कहलाती है। कडिय़ों के विचार से खाट की बुनावट के नाम दुकड़ी, तिकड़ी, चौकड़ी, छहकड़ी, अठकड़ी, नौकड़ी, बारह कड़ी कहलाती है। इसके साथ ही फूलों के अनुसार की गई भराई चौफुली, नौफूली, सोलहफुली, चौंसठफुलिया कहलाती है। बेल तथा लहर के आधार पर जो चारपाई भरी जाती है उसे खजूरी, गड़ेरिया, चौफडिय़ा, राजवान, सतरंजी, लहरिया तथा सांकरछल्ली कहा जाता है। इसके अतिरिक्त देहात में चारपाई के अनेक प्रकार के डिज़ाईन भरे जाते हैं जिनमें फूलपत्ती, चक्रव्यूह, चौपड़, छत्ता, किला, ताजमहल, पाखिया, जाफरी, चौफेरा, चौंकिया, शंकरफुलिया, चटाई, मकड़ी, गडिय़ा, निवाड़ी न जाने कितने ऐसे डिजाई हैं जो चारपाई भराई में प्रयोग हो रहे हैं। वास्तव में भराई के यह डिज़ाईन लोक पारम्परिक संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
गीता संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में संस्कृत-पालि-प्राकृत विभाग द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता में प्रतिपादित सामाजिक समरसता विषय पर मंथन किया गया।
कुरुक्षेत्र, 18 दिसम्बर। गीता जयंती के पावन अवसर पर आठवीं अंतर्राष्ट्रीय गीता संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में सोमवार को संस्कृत-पालि-प्राकृत विभाग द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता में प्रतिपादित सामाजिक समरसता विषय पर मंथन किया गया। इस सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. वीरेन्द्र अलंकार ने अपने उद्बोधन में कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता मानव को जीवन की विकट समस्याओं में मार्ग दिखाती है व समाज को एक सूत्र में बांधती है। वर्तमान सामाजिक परिस्थिति के सन्दर्भ में श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता की वर्ण व्यवस्था समाज को व्यवस्थित रूप प्रदान करती है।
द्वितीय मुख्य वक्ता प्रो. सी. उपेन्द्र राव ने श्रीमद्भगवद्गीता की सार्वभौमिकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि गीता ऐसा ग्रन्थ है जो देश व काल की सीमा से परे है इसके ज्ञान द्वारा मानव मन में भ्रातृत्व की भावना का विकास होता है जो सामाजिक समरसता का प्रमुख तत्त्व है । उन्होंने कहा कि गीता प्राणिमात्र में ईश्वर का अस्तित्व स्वीकारती जो समाज के सभी मनुष्यों में विद्यमान है। ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से आई बहन वीके वीना ने भी श्रीमद्भगवद्गीता की आध्यात्मिक चेतना पर वर्तमान संदर्भ में प्रकाश डाला। कार्यक्रम का प्रारंभ विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्णा देवी के स्वागत वक्तव्य से हुआ। प्रो. विभा अग्रवाल ने प्रतिभागियों से वक्ताओं से परिचित कराया। इस सत्र के लिए 54 रजिस्ट्रेशन हुए जिनमें से देश व विदेश से आए प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों ने 40 शोध पत्रों को संगोष्ठी में प्रस्तुत किया गया तथा अन्य शेष शोधपत्रों पर विद्वानों ने संक्षेपतः विमर्श किया।