केयू ने हरियाणवी लोक नृत्य लूर को पुनः जीवंत करने का अहम कार्य किया
वर्तमान सत्र से लूर नृत्य युवा उत्सवों का बनेगा हिस्सा
केयू सीनेट हॉल में युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से लूर एवं रसिया नृत्य पर कार्यशाला आयोजित
कुरुक्षेत्र, 06 अक्टूबर। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संरक्षण एवं समृद्धि को लेकर नए आयाम स्थापित कर रहा है। उन्होंने कहा कि केयू के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग द्वारा शोध एवं डॉक्यूमेंटेशन कर हरियाणा प्रदेश के लुप्त हो चले लोक नृत्य लूर को पुनः जीवित कर युवा उत्सवों का हिस्सा बनाने का फैसला लिया है। वे शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से लूर एवं रसिया नृत्य पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा, केयू छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. शुचिस्मिता, रिसोर्स पर्सन डॉ. रामफल चहल, डॉ. रमाकांता शर्मा, उपनिदेशक डॉ. गुरचरण सिंह द्वारा युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से तैयार लूर नृत्य विवरणिका का भी विमोचन किया गया।
केयू युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने कार्यशाला में उपस्थित केयू से संबधित महाविद्यालयों के कल्चरल कॉआर्डिनेटर व कंटिजेंट इंचार्ज को संबोधित करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों में लूर नृत्य की नियमावली तथा उसके गीत प्रेषित कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि गत वर्ष हरियाणा के महामहिम राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने लूर नृत्य की विधिवत रूप से डॉक्यूमेंटेशन की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की पूरी टीम ने अपनी मेहनत और लग्न से गांवों में जाकर अनेक बुजुर्ग महिलाओं के साथ साक्षात्कार कर लूर नृत्य को फिर से पुनः जीवित किया है। इसके साथ ही गत वर्ष रत्नावली पर लूर नृत्य की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया था। डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि पिछले वर्ष 1 नवंबर को हरियाणा राजभवन एवं गीता जयंती में लूर की प्रस्तुति ने हरियाणा की लोक सांस्कृतिक छटा को मंच पर प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर ऑल इंडिया रेडियो के पूर्व निदेशक रामफल चहल ने बतौर रिसोर्स पर्सन कहा कि लोक पारंपरिक नृत्यों को दोबारा से जीवित करने में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभा रहा है। कार्यशाला में उपस्थित डॉ. रमाकान्ता, डॉ. रामनिवास सहित अन्य विद्वानों ने भी लूर एवं रसिया नृत्य पर अनुभव सांझा किए व रसिया नृत्य में आए बदलाव को लेकर अपने विचार अभिव्यक्त किए। मंच का संचालन डॉ. हरविन्द्र राणा ने किया।
इस अवसर पर केयू छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. शुचिस्मिता, प्रो. रामविरंजन, प्रो. परमेश कुमार, प्रो. विवेक चावला, डीवाईसीए उपनिदेशक डॉ. गुरचरण, लोक सम्पर्क विभाग के उपनिदेशक डॉ. दीपक राय बब्बर, कुटा प्रधान डॉ. आनन्द कुमार, डॉ. जितेन्द्र खटकड़, डॉ. मीनाक्षी सुहाग, डॉ. हरविन्द्र लोंगोवाल, डॉ. हरविन्द्र राणा सहित विश्वविद्यालय से संबंधित महाविद्यालयों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रभारी उपस्थित रहे।
बॉक्स
लोक कला एवं संस्कृति के मूल रूप को जीवंत रखना मुख्य उद्देश्य
युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के उपनिदेशक डॉ. गुरचरण सिंह ने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य हरियाणा लोक कला एवं संस्कृति के मूल रूप को फिर से जीवंत करना है ताकि आने वाली पीढ़ियां हरियाणवी संस्कृति के वास्तविक रूप से रूबरू हो सके।
बॉक्स
केयू युवा उत्सवों में लूर नृत्य को किया गया शामिल
डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि इस वर्ष कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा उत्सवों में लूर को शामिल किया जा रहा है। करनाल जोन, अंबाला जोन, यमुनानगर जोन तथा कुरुक्षेत्र जोन के यूथ फेस्टिवल की शुरुआत आगामी 16 अक्टूबर से हो रही है। इन सभी उत्सवों में लूर नृत्य प्रतियोगिता विधा के रूप में शामिल किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि रत्नावली समारोह में भी लूर नृत्य शामिल कर लिया गया है। इस प्रकार लूर नृत्य रत्नावली एवं युवा उत्सव का हिस्सा बनकर युवा पीढ़ी से जुड़ जाएगा और आने वाले दिनों में हरियाणा को खोड़िया, रसिया, धमाल के साथ-साथ लूर नृत्य की भी एक नई विधा मिल जायेगी।
बॉक्स
मेहंदी एवं एलोक्यूशन नई विधा युवा उत्सव में शामिल
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से मेहंदी एवं एलोक्यूशन प्रतियोगिता को नई विधाओं के रूप में यूथ फेस्टिवल की प्रतियोगिता का हिस्सा बनाया है। इसके लिए नई नियमावली बनाकर यूथ फेस्टिवल में शामिल किया गया है। विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि ए.आई.यू. द्वारा आयोजित राष्ट्रीय उत्सव में उक्त विधाएं शामिल थी, जबकि विश्वविद्यालय के युवा उत्सव में यह विधा शामिल नहीं थी। इसलिए इन विधाओं को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में विश्वविद्यालय की गरिमा को बढ़ाने के लिए शामिल किया गया है।