31 मई, विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष लेख
लेखक- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
यदि तंबाकू उत्पादन में भारत की बात करें तो चीन और ब्राजील के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। आईसीएआर- केंद्रीय तम्बाकू अनुसंधान केंद्र आंध्र प्रदेश द्वारा प्रकाशित एक लेख के अनुसार भारत में तम्बाकू 36 मिलियन लोगों को आजीविका सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें 6 मिलियन किसान और 20 मिलियन खेत मजदूर शामिल हैं, जो तम्बाकू की खेती में लगे हैं। इसके अतिरिक्त 10 मिलियन लोग प्रसंस्करण, विनिर्माण और निर्यात में काम करते हैं। अकेले बीड़ी बनाने से 4.4 मिलियन लोगों को रोजगार मिलता है और 2.2 मिलियन आदिवासी तेंदू पत्ता संग्रह में लगे हैं। मुख्य लाभार्थी छोटे और सीमांत किसान, ग्रामीण महिलाएं, आदिवासी युवा और समाज के कमजोर वर्ग हैं। तम्बाकू सालाना 4,400 करोड़ रुपये विदेशी मुद्रा आय में योगदान देता है, जो देश के कुल कृषि-निर्यात का 4% है और 14,000 करोड़ रुपये उत्पाद शुल्क राजस्व में योगदान देता है, जो सभी स्रोतों से कुल उत्पाद शुल्क राजस्व संग्रह का 10% से अधिक है। यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था में तंबाकू का विशेष योगदान है तथापि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह घातक है।
39 वीं विश्व स्वास्थ्य सभा (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने 15 मई 1986 को 14 वें अधिवेशन में यह पारित किया था कि धूम्रपान न करने वाले लोगों को धूम्रपान के अनचाहे प्रभाव से बचाने के लिए उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाए क्योंकि अनेक स्थानों पर लोग धूम्रपान करते हैं और यह नहीं सोचते कि इसका प्रभाव अन्य व्यक्ति पर क्या हो रहा है। इस प्रकार ऐसे लोगों को जो धूम्रपान नहीं करते उन्हें अनचाहे धूम्रपान के धुएं से संरक्षण प्रदान करने हेतु 31 मई 1987 को पूरे विश्व में तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। यह निर्णय विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एक प्रस्ताव पारित करके लिया गया था।
भारत में भी इस पर कार्य किया गया और गणतंत्र के 54 वें वर्ष में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम, 2003 सम्पूर्ण भारत पर लागू किया गया। इस अधिनियम के अनुसार धारा 4 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान नहीं करेगा परन्तु किसी ऐसे होटल में जिसमें 30 कमरे हों अथवा जहाँ 30 से अधिक व्यक्तियों के बैठने की क्षमता हो तो वहां धूम्रपान की अलग से व्यवस्था की जाएगी। इसी कड़ी में धारा 5 के अंतर्गत सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। धारा 6 के अनुसार किसी भी 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को सिगरेट और तम्बाकू आदि नहीं दिया जाएगा और न ही किसी शिक्षण संस्थान की 100 मीटर की परिधि में इन उत्पादों का विक्रय होगा। धारा 7 के अनुसार सिगरेट और तंबाकू पर चेतावनी का लेबल आवश्यक है और यह भी सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप में होना चाहिए। इस अधिनियम के अंतर्गत पुलिस उप निरीक्षक या उससे ऊपर का अधिकारी ऐसे स्थान में प्रवेश कर सकता है और तलाशी ले सकता है जहाँ यह विक्रय करना प्रतिबंधित है।
इसके अतिरिक्त सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध नियमावली, 2008 लागू की गई है जो 2 अक्टूबर 2008 से सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने से रोकती है। यह नियमावली स्पष्ट रूप से धारा 3 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान के मालिक, प्रबंधक को बाध्य करती है कि कोई भी व्यक्ति उसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान न करे। सार्वजनिक स्थान के प्रवेश द्वार पर यदि एक से ज्यादा प्रवेश द्वारा हैं तो प्रत्येक प्रवेश द्वार और उनके अंदर न्यूनतम 60 सेंटीमीटर x 30 सेंटीमीटर आकर का सफ़ेद पृष्टभूमि का बोर्ड लगाएगा जिस पर “गैर-धूम्रपान क्षेत्र- धूम्रपान अपराध है” लिखा होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष तंबाकू के कारण 80 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। इतना ही नहीं 13 लाख ऐसे लोग हैं जो स्वयं तंबाकू का सेवन नहीं करते लेकिन उनके पास रहते हैं जो सेवन कर रहे होते हैं। इसमें विशेष रूप से बालक, वृद्ध और महिलाएं विशेष रूप से होती हैं। यदि हम भारत की बात करते हैं तो भारत में प्रति वर्ष लगभग 17 लाख लोग तंबाकू के कारण अपने प्राण गंवाते हैं। एक लेख के अनुसार प्रतिदिन तम्बाकू के कारण भारत में 3699 मृत्यु हो रही हैं तो दूसरी और प्रत्येक 4 सेकंड में एक बालक की मृत्यु केवल ऐसे लोगों के संपर्क में होने के कारण होती हैं जो उनके पास रहकर धूम्रपान करते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि भारत में एक और तम्बाकू रोजगार प्रदान करता है तो दूसरी और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए क्षतिकारक है। तम्बाकू के सेवन से हाई ब्लड प्रेशर, लकवा, श्वास रोग, दमा, कैंसर जैसी भयानक व्याधियां हो रही हैं। लोगों ने इसे आजीविका का साधन बना लिया है। चिंता का विषय यह है कि आज 100/200 मीटर पर कोई खाद्य सामग्री मिले या न मिले तम्बाकू उत्पाद अवश्य दिखाई दे जाते हैं। रंग बिरंगे पाउच में विभिन्न प्रकार के पान मसाले और तम्बाकू लटके मिलते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली संतान नशों से दूर रहे तो तम्बाकू उत्पाद पर भी पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाना होगा। जो लोग इसके आदि हो चुके हैं उन लोगों को इसे छोड़ने का संकल्प लेने की आवश्यकता है। यदि नशा कोई भी अच्छा होता तो सबसे पहले हमारे माता-पिता हमें सेवन के लिए दे देते।
आज सिगरेट और हुक्का परिवर्तित रूप में हमारे सामने आ चुका है और वो है इ-सिगरेट और ई-हुक्का जो प्रतिबंधित है। आज भी लोगों की धारणा है कि हुक्का भाईचारे का प्रतीक है जबकि यह मिथ्या है। यदि हुक्का हमारी सभ्यता और संस्कृति का अंग होता तो इसका वर्णन वेद ग्रन्थ और शास्त्रों में अवश्य होता।
(लेखक- डॉ. अशोक कुमार वर्मा, हरियाणा राज्य नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो में जागरूकता कार्यक्रम एवं पुनर्वास प्रभारी के रूप में नियुक्त हैं।)