संतों संग हरियाणा के गृह मंत्री का हुआ कथा में आगमन
कुरुक्षेत्र, 24 नवम्बर (जीओ गीता) : महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के सान्निध्य एवं गीता ज्ञान संस्थानम् के तत्वाधान में मेला ग्राउंड में आयोजित की जा रही श्री राम कथा मानस गीता में नित्यप्रति की भांति देश के प्रमुख संतों का आगमन रहा। गुरुग्राम से पधारे महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज, वृंदावन से भागवत भास्कर कृष्ण चंद्र ठाकुर, भांबोली से बाबा जसदीप सिंह, पटना साहब से जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह, भद्रकाली पीठ कुरुक्षेत्र के पीठाधीश्वर सतपाल महाराज एवं पानीपत से स्वामी शिव नाथ महाराज का श्री राम कथा मानस गीता में पधारने पर कथा के आयोजक मंडल के प्रदीप मित्तल, किशोर अग्रवाल, अशोक चावला, डा. सुदर्शन अग्रवाल, राजेश पजनी व सूरज दुरेजा ने पुष्पमाला के साथ स्वागत किया। कथा श्रवण करने विशेष रुप से पधारे हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज को गीता ज्ञान संस्थानम् की ओर से जीओ गीता इंग्लैंड के महासचिव अनीत कपूर, हैप्पी चावला एवं बृज गुप्ता ने स्मृति चिन्ह भेंट किया। कथा से पूर्व गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कथा में पधारे सभी संतों का मंच से साक्षात्कार करवाया। तत्पश्चात सभी संतो ने मुरारी बापू को पुष्प भेंट करते हुए व्यासपीठ को नमन किया। हनुमान चालीसा एवं श्री राम स्तुति से प्रारंभ हुई श्रीराम कथा के छठे दिन रामचरितमानस के साथ श्रीमद्भगवद्गीता पर संवाद करते हुए मुरारी बापू ने कहा कि कुरुक्षेत्र की धरा गीता की जन्मभूमि तो है ही, कर्म भूमि भी यही धरा है। गीता की तीर्थ भूमि भी यही है और युद्ध के बहाने गीता यहां प्रकट हु,ई इसलिए गीता की बुद्ध भूमि भी यही है। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र की धरा पर गीता के प्रकट होने से जागृत काल प्रकट हुआ, इसलिए इस भूमि का महत्व स्वर्ग से भी अधिक है। मुरारी बापू ने कहा कि भगवान कृष्ण सामर्थ्य भी देते हैं और पुरुषार्थ करने की शक्ति भी प्रदान करते हैं। जीवन में प्रारब्ध भी काम करेगा और पुरुषार्थ भी। उन्होंने भगवान की वंदना में किसी कविता की पंक्तियां गुनगुनाते हुए कहा कि शायरी तो सिर्फ बहाना है, असली मकसद दो उसे रिझाना है।
जीवन में गुरु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुरारी बापू बोले कि हमारा स्थूल शरीर हमारे माता-पिता के भोग की देन है लेकिन हमारा सूक्ष्म शरीर हमारे गुरु के भजन की देन है। शिष्य के रूप में विभीषण एवं अर्जुन तथा गुरु के रूप में राम एवं कृष्ण पर संवाद करते हुए मुरारी बापू ने कहा कि जहां ओर पूरे विश्व को धन्य करने वाले राम और कृष्ण के अवतार को हमें नहीं भूलना चाहिए, वहीं दूसरी ओर महाभारत की गीता और रामायण की सीता को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। कथा के मध्य में मुरारी बापू द्वारा गाए गए भजन सभी मस्त हैं कौन किसको संभाले, जिसे देखिए लड़खड़ा ने लगा है। नशे में जमाना, जमाने में हम, हम पर भी इल्जाम आने लगा है। सभी मस्त हैं कौन किसे संभाले पर कथा पंडाल में उपस्थित हजारों की संख्या में श्रद्धालु झूमते दिखाई दिए। कथा से पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव एवं भागवत भास्कर कृष्ण चंद्र ठाकुर ने भी अपने प्रवचनों के माध्यम से श्रद्धालुओं को सराबोर किया। कथा के अंत में गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज, श्री राम कथा मानस गीता के मुख्य यजमान राज सिंगला एवं संतों के साथ सभी श्रद्धालुओं ने खड़े होकर रामायण जी की आरती की। इस अवसर पर कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा, शाहाबाद नगरपालिका के प्रधान डा. गुलशन कवातरा, विजयपाल सिंह, डा. के.सी. शर्मा, सतीश गुप्ता, विजय नरूला, दिनेश ग्रोवर, उपेंद्र सिंह, रविंद्र चोपड़ा, हंसराज सिंगला, योगेश चावला, एवं नरेंद्र मोंगा सहित भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
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क्या त्याग से शांति मिलती है : जिज्ञासु
श्री राम कथा मानस गीता के छठे दिन महाराष्ट्र के एक जिज्ञासु ने लिखित में बापू से सवाल पूछते हुए कहा कि बापू क्या त्याग से शांति मिलती है। व्यासपीठ से जिज्ञासु की बात का उत्तर देते हुए मुरारी बापू बोले कि सब कुछ त्याग देने से कभी शांति नहीं मिलती। केवल उसका त्याग करना चाहिए, जो हमें अशांति दे रहा है। उन्होंने कहा कि अशांति देने वाली वस्तु का त्याग करने से शांति स्वतः मिल जाती है। मुरारी बापू ने कहा कि अधिक प्रतिष्ठा और जरूरत से ज्यादा वाह-वाह भी अशांति पैदा करती है। आमजन तो दूर की बात बल्कि वाह-वाह साधु से उसका भजन भी छुड़वा देती है। बापू ने कहा कि जिससे मन शोकग्रस्त हो उसका त्याग आवश्यक है और इसके विपरित जिससे पहले ही शांति मिल रही है उसका त्याग क्यों।