कुरुक्षेत्र, 26 फरवरी : आयु की सीमा के बंधन से मुक्त कला सृष्टि मंच के कलाकार पिछले करीब 6 सालों से कार्यक्रम आयोजित कर अपनी कला का लोहा मनवा रहे हैं। इसी क्रम में कला सृष्टि मंच कुरुक्षेत्र द्वारा नया सवेरा नाटक का मंचन भरत मुनि सभागार में प्रस्तुत किया गया। यह नाटक हरियाणा कला परिषद के सौजन्य से प्रस्तुत किया गया। समाज की विभिन्न परिवारों की अलग अलग परिस्थितियों को बड़े उम्दा ढंग से प्रदर्शित किया गया। नाटक का लेखन एवं निर्देशन अन्तरराष्ट्रीय रंग कर्मी बृज शर्मा द्वारा किया गया। ,इसी मौके पर समाजसेवी, कला प्रेमी प्रेरणा संस्था के संस्थापक और कला सृष्टि मंच के मार्गदर्शक जय भगवान सिंगला को उनके उत्कृष्ट कला के क्षेत्र में किए गए प्रशंसनीय एवं उल्लेखनीय कामों के लिए सम्मानित किया गया।
नाटक की कहानी तीन सहेलियों के अलग-अलग जीवन के प्रति दृष्टिकोण एवं सोच को लेकर प्रदर्शित की गई। आशा, सपना और सरिता की दोस्ती कालेज के समय से ही निरंतर चल रही थी। विद्यार्थी काल की मस्ती के बाद तीनों की शादी अलग अलग परिवारों के परिवेश में होती है। जिसमें आशा, जो खुशहाल जिंदगी जी रही थी, लेकिन एक दिन अचानक उसके पति आदर्श की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है और उसके ससुर को इस सदमे से लकवा हो जाता है। आशा विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए अपने ससुर की सेवा को ही जीवन का लक्ष्य बना लेती है।
दूसरी सहेली सपना की शादी बड़े धनाढ्य परिवार में होती है, परन्तु पति को धन संपदा की अधिकता का अहम अहम होता है। इसलिए एक दिन अचानक उसकी पत्नी के प्रति प्रताड़ना के कारण सपना अवसाद से ग्रस्त हो जाती है। उसकी जिंदगी बिखर जाती है । तीसरी सहेली सरिता की शादी फौजी अधिकारी से होती है। हंसते खेलते बीतते हुए जीवन में एक दिन उसके पति को देश पर हुए आक्रमण के कारण मुख्यालय से बुलावा आ जाता है परन्तु सरिता उसकी भी विदाई करती है।
आशा को जब पता चलता है कि उसकी सहेली सपना अवसाद से ग्रस्त है, वो उसे प्यार से अपने घर बुला लेती है और तीसरी सहेली सरिता को भी बुला लेती है। तीनो सहेलियां इकट्ठी होती है। आशा और सरिता सपना को पुरानी यादें ताजा करवाती हैं ताकि सपना का अवसाद ठीक हो सके, उसका रोग ठीक हो सके। आशा के घर जाकर सपना को जब पता लगता है कि उसकी सहेली का त्याग, साहस और सकारात्मकता उम्दा है। उसका विकलांग ससुर को ही अपना जीवन बना रखा है, बेशक उसके पति का देहान्त हो गया है। नाटक के अंत में शानदार संदेश दिया कि जीवन में सुख दुःख तो आते रहते हैं उस का कैसे अपनी अच्छी सोच को लेकर चलना ही जिन्दगी का सिद्धांत होने से ही जीवन सहज, सरल और श्रेष्ठ बन जाता है। नाटक के लेखक एवं निर्देशक बृज शर्मा ने विकलांग ससुर का किरदार निभाते हुए अपनी श्रेष्ठता का परिचय दिया।
हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेन्द्र शर्मा के पूर्ण सहयोग के लिए संस्था के सचिव राजेश सिंगला द्वारा उनका आभार प्रकट किया गया।
बृज शर्मा के साथ साथ नीरज आश्री, दमन शर्मा, सरिता दहिया, दीपक शर्मा, कपिल बत्रा, मधु मल्होत्रा, रेणु खुंगर, सुशील कुमार, मीरा गौतम, सपना चावला, डा. स्वरित शर्मा, साक्षी गौतम, मानवी शर्मा, संजीव छाबड़ा, भावना शर्मा, आशी खेत्रपाल,जस्सी एवं कृष द्वारा विभिन्न किरदारों को निभाया गया। संगीत पंकज शर्मा का रहा। मंच संचालन विकास शर्मा ने किया। डा. सत्य भूषण, डा. विभा अग्रवाल, डा.. दीपक कौशिक द्वारा गीतों के माध्यम से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम में सौरभ चौधरी, आशा सिंगला, डा. मोहित गुप्ता, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डा. संजीव शर्मा, डा. सुचिस्मिता शर्मा, डा. कर्ण शर्मा, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी विनोद कौशिक, जिला शिक्षा अधिकारी संतोष शर्मा, पृथ्वी गौतम, मंजू सिंगला, रणधीर शर्मा, डा. हरबंस कौर, सहदेव शर्मा, डा. रमन कान्ता, अनिल कपूर, धर्मपाल, शिव कुमार किरमच, मास्टर जितेंद्र एवं भावना शर्मा इत्यादि मौजूद रहे।