चिकित्सक बनने के साथ-साथ अच्छा नागरिक बनना बहुत जरूरी- प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान

डॉ. राजेश वधवा
कुरुक्षेत्र। श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में इस सत्र में दाखिल हुए छात्र-छात्राओं का शिष्योपनयन संस्कार और हवन यज्ञ का आयोजित किया गया। जिसमें कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान द्वारा नव आगंतुक चिकित्सकों को एप्रन प्रदान की गई। इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और करनाल की कबीर वेलनेस कंपनी का विशेष रूप से सहयोग रहा। प्राचार्य डॉ. देवेंद्र खुराना ने मुख्य वक्ता एबीवीपी के प्रांत संगठन मंत्री श्याम कुशवाह, कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलपति वैद्य करतार सिंह धीमान और विशिष्ट अतिथि डॉ. संजय जाखड़ का स्वागत व आभार प्रकट किया। कुलपति ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में संस्कारों का विशेष महत्व रहा है, जन्म से मृत्यु तक मनुष्य के 16 संस्कार हैं, जिनमें उपनयन संस्कार की अलग ही उपयोगिता है। उपनयन का अर्थ  है गुरु शिष्य का परस्पर नजदीक आना है। अतः जितना अधिक हो सके विद्यार्थी जीवन काल मे गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। जो जीवन पर्यन्त काम आने वाला है। उन्होंने कहा कि जीवन में चिकित्सक बनने से पहले अच्छा नागरिक बनना बहुत जरूरी है। इसलिए भारत सरकार ने भी नई शिक्षा नीति में बहुत सारे बदलाव करते हुए शिक्षा क्षेत्र को भारत केंद्रित यानी भारतीय परंपरा और संस्कारों से जोड़ने की कोशिश की है। क्योंकि भारत के पर्व और त्यौहार विज्ञान सम्मत होने के साथ ही व्यक्ति को संस्कारवान और विचारवान बनाते हैं। जिनको ग्रहण कर व्यक्ति समाज का अच्छा नागरिक बनता है। मुख्य वक्ता श्याम कुशवाहा  ने कहा कि भारत देश युवाओं का देश है। युवाओं में देश की दशा और दिशा बदलने की ताकत होती है। पढ़ने के बाद नौकरी करनी और पैसा कमाना यह हमारा ध्येय नहीं होना चाहिए। बल्कि अपने पेशे को समाज उपयोगी कैसे बनाया जाए इस पर भी प्रत्येक युवा को विचार करना चाहिए। तभी शिक्षा ग्रहण का उद्देश्य सफल होगा। कुलसचिव डॉ. नरेश भार्गव ने कहा कि अध्ययन और अध्यापन विषय हमेशा भारतीय संस्कृति से जुड़े रहे है इस ज्ञान से विद्यार्थियों को अवगत कराना बहुत जरूरी है। भारतीय ज्ञान परंपरा में आधुनिक ज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए अद्भुत खजाना है, भारतीय दृष्टिकोण का अध्ययन कर ही भारत एक बार फिर विश्व गुरु बन सकता है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ. संजय जाखड़ ने कहा कि उपनयन संस्कार एक प्रकार से नए जीवन का पदार्पण है। जिसमें उथल-पुथल और कठिनाइयां आनी स्वाभाविक हैं। मगर इनसे घबराने की जरूरत नहीं है। अगर आप कठिनाईयों का सामना डट कर करेंगे, तो अवश्य आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का उद्धार कर पाएंगे। कार्यक्रम के अन्त में सहायक प्रो. डॉ. लसिता सनाल द्वारा सभी गणमान्य अतिथियों और आयोजक समिति का आभार प्रकट किया गया। इस अवसर पर सभी शिक्षक गण और अधिकारीगण मौजूद रहे।

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