हरियाणा के करनाल की बाब बंसीवाला गौ धाम की गौशाला में 45 गायों की मौत के मामले में 7 दिन बाद भी पोस्टमार्टम और चारे की फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं आई। वहीं दूसरी और बुधवार को कांग्रेस नेत्री के पति दीपक मेहरा ने निगम द्वारा जारी किए कारण बताओ नोटिस का जवाब भी दे दिया है। हालांकि नोटिस का जवाब क्या दिया गया है। इसका खुलासा निगम के अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए गुरुवार शाम को CM मनोहर लाल नेउच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन कर दिया। अब चार दिन में ही कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को सबमिट करेगी। ऐसे में यह स्पष्ट हो चुका है कि गायों के मौत के मामले में निगम की तरफ से जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही थी और एक दूसरे को बचाने की कोशिश की जा रही थी। यदि अधिकारियों की जांच निष्पक्ष होती तो हरियाणा सरकार को मामले में दखल देने की जरूरत ना पड़ती।
गायों की मौत का आज भी रहस्य
दूसरी ओर गायों की मौत कैसे हुई यह अभी भी रहस्य बना हुआ है और इस रहस्य से पर्दा फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद ही हो पाएगा। साथ ही चारे की सैंपल रिपोर्ट भी बड़ा खुलासा कर सकती है। फिलहाल दोनों ही रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
दूसरी दिशा में जा चुकी है जांच
अब तक लोग सिर्फ यहीं जानना चाह रहे कि आखिरकार गायों की मौत कैसे हुई? चारा पीछे से ही जहरीला होकर आया था या फिर रात को गौशाला में चारे को जहरीला बनाया गया अथवा कोई और कारण है गायों की मौत का? गायों की मौत के मामले में आगामी जांच विसरा रिपोर्ट व चारे की सैंपल रिपोर्ट पर अटकी हुई है, लेकिन गौशाला में जिस तरह से घोटालेबाजी चल रही थी, उसकी परतें उखड़नी शुरू होने के बाद निगम, गौशाला प्रबंधन और सफाई व्यवस्था एजेंसी में खलबली मची हुई है। गायों की संख्या 960 और पैसा लिया जा रहा था 2500 गायों के नाम का।
जिम्मेदारों को गाय के स्वास्थ्य की नहीं चिंता, टारगेट सिर्फ कमीशन बनाना
गाय माता के नाम पर लाखों की हेराफेरी करने वाला कोई एक व्यक्ति था या फिर निगम, गोशाला प्रबंधन अथवा एजेंसी भी जुड़ी हुई है। घोटालेबाजी के तार किस किसके साथ जुड़े हुए हैं यह जांच का विषय है और जांच होनी भी चाहिए। क्योंकि गोशाला में लगातार गायों की मौतें होती है, मात्रा में पैसा खर्च किया जाता है, लेकिन वह गायों तक पहुंच ही नहीं पाता, क्योंकि कुछ कमीशनखोर उस पैसे को बीच में ही डकार जाते हैं और कुछ रखरखाव में कमी दिखाकर पैसों का एक बड़ा कट लगा देते हैं।
गोशाला में गायों के स्वास्थ्य को लेकर किसी तरह की चिंता नजर नहीं आती। न तो समय पर वेटनरी डॉक्टर उपलब्ध हो पाते हैं और न ही टाइम पर मेडिसिन मिल पाती है। ऐसे में सेवादारों को ही डॉक्टर की भूमिका निभानी पड़ती है।