कुरुक्षेत्र , अक्टूबर 12,2024-
“प्रतिक्रिया प्रबंधन की कला नीडो-गवर्नेंस हेतु शैक्षणिक नेताओं द्वारा महारत हासिल करने योग्य कौशल है” ये शब्द प्रो. मदन मोहन गोयल, तीन बार कुलपति एवं प्रवर्तक नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट जो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए ने कहे। वह यूजीसी-मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज द्वारा ऑनलाइन 8वें एनईपी2020 ओरिएंटेशन और सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम के प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। उनका विषय था “संस्थागत प्रबंधन में नीडो-गवर्नेंस हेतु शैक्षणिक नेतृत्व”। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. रुचि दुबे ने स्वागत भाषण दिया और प्रो. एम.एम. गोयल की उपलब्धियों पर प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किया।
प्रो. गोयल ने जोर देकर कहा कि लालच और अहंकार से प्रेरित अंतिम शब्द कहने की प्रवृत्ति को “सही होने की इच्छा” से “बुद्धिमान होने की आवश्यकता” की ओर स्थानांतरित करके उच्च स्तर की प्रतिक्रियाओं में परिवर्तित किया जा सकता है।
प्रो. गोयल ने कहा कि नए दृष्टिकोण लाने और सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देकर, संस्थान लगातार सुधार कर सकते हैं और अकादमिक नेतृत्व के उच्च मानकों को बनाए रख सकते हैं।
उन्होंने ऐसे शासन प्रणालियों के महत्व पर जोर दिया जो सतत मानवीय विकास को बढ़ावा देती हैं और कहा कि आज के समाज के लिए लिंग-तटस्थ साहित्य अत्यंत आवश्यक है।
प्रो. गोयल ने कहा कि नीडो शासन के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में बिना किसी चिंता के काम करने के लिए, हमें केवल प्रतिबद्धता नहीं बल्कि भक्ति के साथ आत्म-जागरूक होना चाहिए।
प्रो. गोयल ने कहा कि भारतीय शिक्षा शासन प्रणाली की हर समस्या के लिए वेदों में समाधान हैं, और गीता और अनु-गीता सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने शासन में प्रभावशीलता और दक्षता बढ़ाने के लिए गीता-आधारित नीडोनॉमिक्स को अपनाने का आह्वान किया।
प्रो. गोयल ने भारत में “छुट्टी की संस्कृति” को “पवित्र दिन की संस्कृति” में बदलने का प्रस्ताव रखा, जिसमें नियमित उपवास, विशेष रूप से डिजिटल उपवास, सप्ताह में एक बार किया जाना चाहिए ताकि एक अधिक सचेत और उत्पादक कार्य वातावरण का निर्माण किया जा सके।
सत्र का समापन इस समझ के साथ हुआ कि नीडोनॉमिक्स में निहित समग्र और मूल्य-आधारित नेतृत्व, शैक्षणिक शासन की कुंजी है।