कांग्रेस ने जितने भी पर्यवेक्षक बनाए हैं, उनमें अधिकतर ऐसे हैं, जो हरियाणा की राजनीति के आसपास भी नहीं हैं। दक्षिण के राज्यों से उनका संबंध है। इसके पीछे कांग्रेस की सोच है कि वे बिना किसी पक्षपात के धरातल पर जानकारी जुटाकर ही कांग्रेस जिलाध्यक्षों का चयन कर पाएंगे। हरियाणा कांग्रेस कमेटी की ओर से इन पर्यवेक्षकों के साथ राज्य के पर्यवेक्षक नियुक्त कर जिलों का आवंटन किया जाएगा। कांग्रेस नेतृत्व ने पर्यवेक्षकों के जिलों की लिस्ट जारी नहीं की है।
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से ऐसे पर्यवेक्षक पहले भी कई बार नियुक्त किए जा चुके हैं, लेकिन उनकी नियुक्ति का कोई फायदा नहीं निकला। हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी बीके हरिप्रसाद को प्रभार संभाले चार माह हो गए हैं।
इन चार माह में बीके हरिप्रसाद की पहली उपलब्धि यही है कि वे केंद्रीय नेतृत्व की ओर से जिलों के पर्यवेक्षकों की नई सूची जारी कराने में कामयाब हो गए हैं। इससे पहले जितने भी पर्यवेक्षक आए, वे हरियाणा कांग्रेस का संगठन बनाने के तमाम प्रयास करने के बाद निराश होकर वापस चले गए। किसी को इस कार्य में सफलता नहीं मिली। इसकी एक वजह यह है कि राज्य में कांग्रेस जबरदस्त गुटबाजी में फंसी है।
हरियाणा में कांग्रेस के इस समय तीन धड़े काम कर रहे हैं। पहला मजबूत धड़ा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का है। साल 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 38 विधायक चुनाव जीतकर आए हैं। इनमें से 33 विधायक हुड्डा खेमे के हैं, जबकि पांच विधायकों में से कुछ धीरे-धीरे हुड्डा खेमे की तरफ सरक रहे हैं। दूसरा मजबूत खेमा कांग्रेस महासचिव कुमारी सैलजा व रणदीप सिंह सुरजेवाला का है।
कुमारी सैलजा डंके की चोट पर हुड्डा के विरोध में हैं, जबकि सुरजेवाला मौके की नजाकत को देखते हुए अपनी राजनीतिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इस धड़े को राज्य में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व नजरअंदाज नहीं कर सकता। तीसरा धड़ा पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव का बचा है, जिसे कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता। भाजपा में जाने से पहले किरण चौधरी भी कुमारी सैलजा व रणदीप सुरजेवाला के खेमे में गिनी जाती थी।