वैदिक वाङ्मय गौरवशाली भारतवर्ष का प्रतीक : डॉ. वीरेन्द्र पाल
कुरुक्षेत्र, 15 फरवरी। संस्कृत पालि-प्राकृत विभाग व संस्कृत प्राच्यविद्या संस्थान केयू के द्वारा महर्षि-सान्दीपनि-राष्ट्रिय-वे
संगोष्ठी के तीसरे दिन के चतुर्थ सत्र में अध्यक्ष पूर्व विभागाध्यक्ष संस्कृत विभाग महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक से प्रो. बलवीर आचार्य, विशिष्ट अतिथि विश्वेश्वरानंद विश्वबन्धु, वैदिक संस्थान की प्रो. रीतु बाला व सारस्वतातिथि पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. वीरेन्द्र अलंकार रहे। प्रो. बलवीर आचार्य ने सत्र में पढे गये शोधपत्रों की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि वैदिक धर्म का अर्थ अनुशासन, नैतिकता, कर्तव्य व संवैधानिक मूल्य ही है। वैदिक धर्म व संस्कृति का महत्त्व किसान, छात्र से लेकर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में है। संगोष्ठी में वैदिक परिप्रेक्ष्य में कृषि, स्वास्थ्य, विश्वशान्ति, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता, राष्ट्र धर्म, समुचित विकास, स्वच्छ राजनीतिक, गौरक्षा, वैदिक संस्कार, संविधान, धर्म आदि विषयों पर लगभग 25 शोध पत्र पढे गये। सत्र का संचालन डॉक्टर विजयश्री ने किया ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के वेदप्रकाश डिंडोरिया ने विकसित राष्ट्र हेतु वैदिक आर्थिक चिंतन को प्रस्तुत किया। वहीं सारस्वत अतिथि प्रोफेसर पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वीरेंद्र अलंकार ने वैदिक मंत्रों को उद्धृत करते हुए राष्ट्र के आंतरिक एवं बाह्य विकास हेतु आवश्यक तत्वों को परिभाषित किया। डॉ कृष्ण आर्य ने त्रिदिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की संयोजिका प्रो. कृष्णा देवी ने संगोष्ठी में आए हुए सभी पत्र प्रस्तोताओ व अतिथियों का स्वागत व धन्यवाद किया। सत्र का संचालन सहायक आचार्य डॉ विनोद कुमार शर्मा ने किया।