केयू आईआईएचएस संस्थान ने जैविक खेती द्वारा दिया स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संतुलन का संदेश
कुरुक्षेत्र, 06 फरवरी। जैविक खेती पर्यावरण संतुलन के लिए वरदान है। जैविक खेती फसल उत्पादन की एक ऐसी प्राचीन कृषि विधि है, जो किसानों को मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में मदद करती है। यह विचार गुरुवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. वीरेन्द्र पाल ने आईआईएचएस संस्थान के सामने मैदान में आईआईएचएस विद्यार्थियों द्वारा संचालित जैविक खेती के निरीक्षण के उपरांत कहे। उन्होंने कहा कि जैविक खेती केवल एक कृषि पद्धति नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, जो हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की सीख देती है। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता, जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता और जल संसाधनों को होने वाले नुकसान को रोकने का यह एक प्रभावी उपाय है।
जैविक खेती के लाभों को ध्यान में रखते हुए केयू आईआईएचएस में वीओसी विषय के अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसका संचालन संस्थान के बॉटनी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल गुप्ता और सहायक प्रोफेसर डॉ. कविता रानी की निगरानी में किया जा रहा है। इस अवसर पर आईआईएचएस प्राचार्या प्रो. रीटा ने सभी विद्यार्थियों की सराहना करते हुए कहा कि कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा के मार्गदर्शन में जैविक खेती की यह मुहिम न केवल विश्वविद्यालय परिसर में हरियाली ला रही है, बल्कि समाज में जैविक खेती के प्रति जागरूकता भी फैला रही है। इस प्रेरणादायक पहल से जुड़कर हर छात्र यह महसूस कर सकता है कि एक छोटे से प्रयास से भी बड़े बदलाव की नींव रखी जा सकती है।
डॉ कविता ने बताया कि जैविक खेती को बढ़ावा देने का यह प्रयास केवल प्रयोगशाला या अनुसंधान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह एक प्रेरणा स्रोत बनेगा, जिससे अन्य छात्र भी इस पहल से जुड़ेंगे। इस प्रयास का लक्ष्य केवल स्वच्छ, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उगाना ही नहीं, बल्कि सतत विकास और हरित भविष्य की ओर ठोस कदम बढ़ाना भी है। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. वीरेन्द्र पाल, प्राचार्या प्रो. रीटा, प्रो. अमृत तथा डॉ. कविता रानी सहित विद्यार्थी मौजूद रहे।