कुरुक्षेत्र 29 जनवरी
ज्योतिसर स्थित श्री गीता कुंज आश्रम बद्रीनारायण मंदिर से पाधरे ब्रह्मसरोवर पर स्वामी मुक्तानंद जी महाराज एवं कुरुक्षेत्र जिला सत्र न्यायाधीश कंज्यूमर कोर्ट की डॉ नीलमा शांगला ने मौनी अमावस्या पर पूजा -अर्चना की। प्रवचन करते हुए स्वामी मुक्तानंद जी महाराज ने कहा कि मौनी अमावस्या के दिन किया गया दान कई गुना फल देता है। अमावस्या के दिन दान-स्नान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और घर-परिवार पर अपनी दृष्टि बनाए रखते हैं। घर से पितृदोष हटाने के लिए भी अमावस्या के दिन पूजा की जा सकती है। इस दिन पूजा-अर्चना करने से और दान-स्नान करने से घर में खुशहाली आती है। माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या और माघ अमावस्या भी कहते हैं। इस अमावस्या पर भगवान शिव और भगवान विष्णु का पूजन करना बेहद शुभ होता है। मौनी अमावस्या के दिन मान्यतानुसार ऋषि मनु का जन्म हुआ था।माना जाता है कि इसदिन मौन रहकर ईश्वर की आराधना करना बेहद शुभ होता है। अगर आप अपने पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो मौनी अमावस्या का दिन सबसे उत्तम रहेगा। इस दिन दान, पिंडदान, तर्पण करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद देतें है। डॉ नीलिमा शांगला ने कहा कि मौनी अमावस्या को सभी देवताओं का कुरुक्षेत्र के तीर्थों में वास होता है। इस दिन कुरुक्षेत्र के तीर्थों में स्नान दान करने का विशेष महत्व माना जाता है। माघ मास की मौनी अमावस्या होने के कारण इसका इसका महत्व काफी गुणा बढ़ गया है। इस बार कुछ ऐसा ही संयोग बना। इस दिन पवित्र नदियों या संगम में स्नान के बाद अपनी इच्छानुसार अन्न, वस्त्र, धन, गाय, भूमि तथा स्वर्ण दान करना विशेष फलदायी होता है। मौनी अमावस्या पर नदियों का जल गंगा के समान पावन माना जाता है और अश्वमेघ यज्ञ के समान इसका फल मिलता है। इस दिन पितरों के निमित्त पिडदान करने से उन्हें अक्षय मोक्ष की प्राप्ति होंगी। उन्होंने कहा कि माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रहने का बड़ा महत्व है। व्रत रखने वालों को मौन रहते हुए व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन श्रीहरि और हर का पूजन किया जाता है। कई श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन व्रत भी रखते हैं। शास्त्रों के अनुसार उच्चारण करके जाप करने से कई गुणा अधिक पुण्य मौन रहकर हरि का जाप करने से मिलता है। मौन या शांत रहने का तात्पर्य है कि भक्त बाहरी जीवन से दूर रहकर स्वयं के भीतर क्या चल रहा है उसका आत्ममंथन करें। मन के भीतर जो भी कमियां नजर आ रही हैं उन्हें समझ ईश्वर की आराधना में लीन होकर अपनी कमियों को दूर करें। मौन का मतलब अपने मन को एकाग्र करना होता है और प्रभु के नाम का स्मरण करना होता है। इससे मानसिक नकारात्मकता दूर होगी। इस मौके पर आचार्य योगेन्द्र द्वारा वेद मंत्रो सहित विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करवाई। इस अवसर पर प्रवीण मित्तल करनाल, प्रीति मित्तल, राधेश्याम अग्रवाल यमुनानगर, संदीप मित्तल, भावना मित्तल व राधेश्याम मित्तल आदि मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन
मौनी अमावस्या पर पूजा-अर्चना करते स्वामी मुक्तानंद जी महाराज एवं साथ डॉ नीलिमा शांगला।