धर्म-कौम के प्रति अडिग और निडर, निर्भय व अदमय साहस की मूर्त रहे दशमेश पिता के साहिबजादें : जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल
धर्मनगरी के ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब पातशाही छठी में सफर-ए-शहादत के तहत हुआ समागम
श्री दरबार साहिब श्री अमृतसर साहिब के हजूरी रागी जत्थे ने किया कीर्तन
कुरुक्षेत्र, 26 दिसंबर
दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के साहिबजादों के जीवन से पे्ररणा लेेकर जिंदगी में आगे बढऩा चाहिए। साहिबजादों से प्रेरित होकर उनकी शिक्षाओं को जीवन में आत्मसात करना ही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धा है। जिस तरह साहिबजादों ने छोटी सी उम्र में भी अपने धर्म व कौम के प्रति समर्पण दिखाते हुए निडरता का परिचय दिया है, उसका आज तक कोई सानी नहीं है। यह विचार हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमैंट कमेटी के प्रधान जत्थेदार भूपिंदर सिंह असंध ने प्रकट किए। वे साहिब-ए-कमाल श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज, माता गुजर कौर, चार साहिबजादों व समूह शहीदों की शहादत को समर्पित सफर-ए-शहादत श्रृंखला के तहत ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब पातशाही छठी में करवाए गए समागम शहीदों को नमन करने पहुंचे थे। इससे पहले जत्थेदार भूपिंदर सिंह असंध, चेयरमैन जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल, वष्ठि उपप्रधान सुदर्शन सिंह सहगल, कनिष्ठ उपप्रधान बीबी रविंदर कौर अजराना, महासचिव सुखविंदर सिंह मंडेबर, संयुकत सचिव गुलाब सिंह मुनक, कार्यकारिणी समिति मैंबर तरिंवदरपाल सिंह अंबाला, गुरप्रसाद सिंह फरीदाबाद, परमजीत ह्यह्यसिंह मक्कड, मैंबर हरविंदर सिंह बिंदू, सुरेंद्र सिंह, बेअंत सिंह नलवी, स्वर्ण सिंह बुंगाटिबी, चीफ  सैकेटरी जसविंदर सिंह दीनपुर, एडिशनल सैकेटरी सतपाल सिंह ढाचर, नरेंद्र सिंह, उपसचिव रूपिंदर सिंह, अमरिंदर सिंह, मैनेजर हरमीत सिंह, जगमीत सिंह बराड़, पीए बलजीत सिंह समेत भारी गिनती में संगत ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज के समक्ष हाजिरी लगाई।
जत्थेदार भूपिदर सिंह असंध ने कहा कि भावी पीढ़ी को संभालने, धर्म, गुरमत और गुरबाणी से जोडऩे के लिए माता-पिता को पहले स्वयं भी नितनेम करना पड़ेगा। इसके साथ ही माता-पिता को ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिबान के दर्शन करके इतिहास का ज्ञान होना चाहिए, तभी बच्चें को धर्म व गुरमत ज्ञान मिल पाएगा। धर्म प्रचार चेयरमैन जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल ने संगत के दर्शन करते हुए कहा कि दशमेश पिता के साहिबजादें धर्म-कौम के प्रति अडिग और निडर, निर्भय व अदमय साहस की मूर्त हैं। अपने अदमय साहस और धर्म के प्रति परिपकवता आज दुनिया के लिए मिसाल है। साहिबाजदों से हम सब को सिखी को संभालने एवं अपने धर्म के प्रति अडिग रहने की सीख मिलती है, जिसे जीवन में आत्मसात करना चाहिए। जत्थेदार दादूवाल ने सरबंसदानी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज द्वारा, माता गुजर कौर व साहिबजादों की शहीदी का इतिहास संगत से सांझा किया। उन्होंने कहा कि दशमेश पिता जी ने अत्याचार के खिलाफ, देश व कौम की रक्षा करने के लिए अपना सारा परिवार कुर्बान कर दिया। हमें गुरु साहिब, माता गुजर कौर व साहिबजादों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने बच्चों को भी ऐसी परवरिश देनी चाहिए।
समागम में श्री दरबार साहिब श्री अमृतसर साहिब के हजूरी रागी भाई गुरमीत सिंह शांत, गुरुद्वारा साहिब पातशाही छठी के हजूरी रागी भाई सूबा सिंह और गुरुद्वारा श्री गुरु ग्रंथसर दादू साहिब के हजूरी रागी भाई गुरसेवक सिंह शबद कीर्तन कर संगत को भावविभोर किया। इसके अलावा पंथ प्रसिद्ध भाई गुरप्रीत सिंह लांडरा के जत्थे ढाडी वारों से संगत को गुरु व शहीदी इतिहास से जोड़ा। इससे पहले भाई सिमरनजीत सिंह व भाई गुरप्रीत सिंह ने भी संगत के समक्ष शहीदी इतिहास रखा।

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