दर्शन का मूल आधार है भारतीय शिक्षा: अवनीश भटनागर
पंचपदी विद्या भारती की मूल शिक्षण पद्धति: गोविंद चन्द्र मोहंत
कार्यकर्ता प्रशिक्षण प्राप्त कर पंचपदी अधिगम पद्धति के माध्यम से करेंगे बालकों का सर्वांगीण विकास

कुरुक्षेत्र, 20 दिसम्बर। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में पंचपदी अधिगम पद्धति स्रोत व्यक्ति कार्यशाला का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलन से हुआ। कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर मंचासीन विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डी.रामकृष्ण राव, संगठन मंत्री गोविन्द चंद्र मोहंत, महामंत्री अवनीश भटनागर, सह संगठन मंत्री यतीन्द्र शर्मा रहे। वि.भा. संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने कार्यशाला की जानकारी देते हुए बताया कि विद्या भारतीय अखिल भारती शिक्षा संस्थान द्वारा आयोजित 5 दिवसीय कार्यशाला 24 दिसम्बर तक रहेगी। कार्यशाला में देशभर के सभी राज्यों से लगभग 110 विषय विशेषज्ञ प्रतिभागिता कर रहे हैं।
विषय की प्रस्तावना रखते हुए श्री गोविन्द चन्द्र मोहंत ने देशभर के सभी राज्यों से प्रशिक्षण प्राप्त करने आए प्रतिभागियों का अभिनंदन करते हुए कहा कि पंचपदी विद्या भारती की मूल शिक्षण पद्धति है। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी पंचकोश और पंचपदी दोनों ही विषय भारतीय दर्शन की दृष्टि से शिक्षा के मूलभूत विषय को भारतीयता के आधार पर रखा गया है। इसमें हमारा दायित्व और ज्यादा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात उसे शिक्षा जगत्, समाज, शिक्षाविद्ों और विद्यालयों में भी स्थापित करना है। पंचपदी के माध्यम से बालक का समग्र और सर्वांगीण विकास हो, इसका प्रयास हम सबको करना है। परिवर्तित परिस्थिति में इस विषय को आगे ले जाने के लिए हम समर्थ बनें तो यह कार्यशाला सफल होगी। उन्होंने प्रतिभागियों से आह्वान किया कि वे पूर्ण रूप से स्रोत व्यक्ति के नाते विकसित हों और अपने प्रांत, क्षेत्र में इसे ले जाने में सक्षम बनें।
कार्यशाला में विद्या भारती के महामंत्री अवनीश भटनागर ने स्रोत व्यक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारे सहयोग से अन्य लाभ ले सकें। हम शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे बिगड़ी शिक्षा पद्धति का विकास हो सके। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा दर्शन का मूल आधार है। मनुष्य के अन्तर्निहित पूर्णता है, उसका प्रकटीकरण करना शिक्षा है। पंचपदी की अवधारणाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पहली अवधारणा ज्ञान बाहर से नहीं दिया जाता अपितु ज्ञान तो स्वयं अन्तर्निहित है, जोकि ढका हुआ है, उसका अनावरण करना ही शिक्षक का काम है। दूसरी, शिक्षा अमूर्त है और इसका मूर्त रूप शिक्षक है, जो शिक्षण के माध्यम से छात्रों को ज्ञान देता है। तीसरी, शिक्षक नहीं सिखाता अपितु सीखने वाला विद्यार्थी सीखता है। उन्होंने गीता के श्लोक ‘‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् तत्परः संयतेन्द्रियः’’ के माध्यम से बताया कि यदि श्रद्धा नहीं है तो आप सीख नहीं सकते। इसी प्रकार यदि विद्यार्थी में सीखने की तत्परता नहीं है तो सीख नहीं सकते। सीखने वाले व्यक्ति की इन्द्रियां भी उसके नियंत्रण में होना अत्यन्त आवश्यक है। पंचपदी शिक्षण का मूल आधार है कक्षा कक्ष के वातावरण में ये तीनों होना। उन्होंने अधिगम के तीन उद्देश्य बताए जिनमें कारणीकरण क्षमता का विकास, प्रमाणीकरण क्षमता एवं अभिव्यक्तिकरण। अभिव्यक्ति तभी सशक्त होगी जब उसे विषय की ठीक से समझ होगी। इन तीनों के बिना शिक्षा का कार्य पूरा नहीं होता। 24 दिसम्बर तक चलने वाली इस कार्यशाला के 24 सत्रों में प्रशिक्षणार्थी पंचपदी अधिगम पद्धति के विषय को आत्मसात करेंगे और इसे अपने-अपने प्रांत, क्षेत्र तक पहुंचाएंगे। मंच संचालन श्री अशोक पण्डा ने किया। कार्यशाला में सह संगठन मंत्री श्रीराम आरावकर, संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजापति, वि.भा. उत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री विजय नड्डा, संस्कृति बोध परियोजना संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित सहित देशभर से आए प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे।

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