गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों से देश के 35 से ज्यादा धामों के संत एकत्रित हुए एक मंच पर, केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत ने की प्रयासों की प्रशंसा, अब क्षेत्रिय स्तर पर होने चाहिए अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन, देश की भावी पीढ़ी को आस्था से जोडऩे का अनूठा प्रयास हुआ अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के देवस्थानम सम्मेलन में, अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के इतिहास में देवस्थानम सम्मेलन ने जोड़ा नया इतिहास, आईजीएम-2024 में गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों से आयोजित हुआ पहला सम्मेलन, बांग्ला देश में हिंदूओं पर मंदिरों की सुरक्षा के लिए समर्पित होगा गीता जयंती दिवस पर गीता श्लोकोंच्चारण
कुरुक्षेत्र 10 दिसंबर केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र शेखावत्त ने कहा कि भारत की पौराणिक संस्कृति, संस्कारों और विचारों को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए देश में केवल कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर ही अपार संभावनाएं है। इस विषय को लेकर कुरुक्षेत्र की पावन धरा से पूरे विश्व को आस्था के साथ-साथ ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टिï से भी समझाया जा सकता है। इसलिए देश की भावी पीढ़ी को आस्था के साथ जोडऩे के लिए देश के सभी संतों और विद्ववानों को बार-बार एक मंच पर बैठकर मंथन करना होगा। इतना ही नहीं भविष्य में अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन क्षेत्रिय स्तर पर अलग-अलग स्थानों पर होने चाहिए।
केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत मंगलवार को गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों से और केडीबी के तत्तवाधान में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के पावन पर्व पर आयोजित पहले अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में बोल रहे थे। इससे पहले केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज, राजकोट से संत परमात्मानंद महाराज, अयोध्या श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय डा. भीमराव अंबेडकर शोध संस्थान के निदेशक डा. प्रीतम सिंह, कुरुक्षेत्र 48 कोस तीर्थ निगरानी कमेटी के चेयरमैन मदन मोहन छाबड़ा, संत राजेश कुमार, वैष्णों देवी मंदिर के मुख्य पुजारी सुदर्शन महाराज, मां भद्रकाली शक्तिपीठ के संचालक सतपाल शर्मा महाराज ने दीपशिखा प्रज्ज्वलित करके विधिवत रुप से अखिल भारतीय देव स्थानम सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस दौरान सभी संत जनों ने संकल्प भी लिया कि बांग्ला देश में हिंदूओं और मंदिरों की रक्षा के लिए गीता जयंती दिवस पर गीता श्लोकों को समर्पित किया जाएगा। इस दौरान देश के 35 धामों से आए संतों ने अपने परिचय देने के साथ-साथ मंदिरों के प्रति युवाओं की आस्था फिर से बने, जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत ने गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र की पावन धरा से स्वामी ज्ञानानंद महाराज की सोच के कारण देश के सभी प्रमुख धामों के संत और संचालक एक मंच पर एकत्रित हुए है। देश में शायद पहली बार संतों के अनूठे संगम को देखने का अवसर मिला है। यह अवसर कुरुक्षेत्र के अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के पावन अवसर पर देखने को मिला है। इस अखिल भारतीय देव स्थानम सम्मेलन के मंच से भारत के मंदिरों के प्रति आस्था बने, इसका सूत्रपात महोत्सव के दौरान हो गया है। इस देश की संस्कृति और सभ्यता हजारों वर्ष पुरानी है, लेकिन समय के बदलाव के साथ-साथ अन्य देशों की सभ्यता और संस्कृति लुप्त हो गई, लेकिन भारत की सनातन संस्कृति आज भी संरक्षित है। इस संस्कृति को नष्टï्र करने के लिए अनेकों आक्रमण और अत्याचार भी हुए। इतना ही नहीं शिक्षा के केंद्रों और चेतना के केंद्र मंदिरों को भी नष्टï्र करने का प्रयास किया गया। इन तमाम पहलूओं के बावजूद आज भी प्राचीन संस्कृति और संस्कार विद्यमान है।
उन्होंने कहा कि मंदिर केवल पूजा व अर्चना करने के स्थान मात्र नहीं है, अपितु सेवा, सदभावना, स्वच्छता, संवेदनशीलता और भारत सरकार के प्रयासों से सशक्तिकरण का केंद्र भी है। इस सांस्कृतिक सशक्तिकरण के कारण ही भारत को भारत बनाए रखा गया है। इस देश में समय के परिवर्तन के साथ संतों ने विचार व्यक्त किए कि मंदिरों से युवा पीढ़ी विमुख हो रही है। इसके कारणों पर मंथन करने और युवाओं को सही राह पर लाने की शुरुआत इस सम्मेलन से हो चुकी है। इस सम्मेलन में अधिकृत मंदिरों की आय के उपयोग करने बारे में सार्थक सुझाव भी सामने आए है। यह सुझाव धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की पावन धरा से उदगम हुए है और आने वाले समय में सार्थक परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि बांग्ला देश में हिंदूओं और मंदिरों की सुरक्षा करना बहुत जरुरी है। इसके लिए सामुहिक भूमिका अहम योगदान दे सकती है। इसके लिए शस्त्रों का प्रयोग किए बिना सभी धामों पर यहां पहुंचे संतों और संचालकों को हिंदूओं और मंदिरों की सुरक्षा के लिए नित्त रोज प्रार्थना करनी होगी। इससे बांग्ला देश में रहने वाले हिंदूओं का भरोसा बढ़ेगा और धीरज भी बढ़ेगा।
केंद्रीय पर्यटन मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से देश में काशी, केदारनाथ, उज्जैन, जगननाथ जैसे मंदिरों को भव्य और सुंदर बनाया गया। इससे देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का काम किया गया। इस देश के सभी तीर्थ स्थलों को विकसित करने के लगातार प्रयास और योजनाओं को केंद्र सरकार की तरफ से अमलीजामा पहनाने का काम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र की पावन धरा से महोत्सव के दौरान अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन के आगाज से निश्चित ही एक नए युग का सूत्रपात होगा। इससे देश के सभी तीर्थ एक सूत्र में बंधेंगे और जिससे देश की भावी पीढ़ी को पौराणिक संस्कृति और संस्कारों से जोड़ा जा सकेगा। इस महत्वपूर्ण विषय के जनक गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के सदैव आभारी रहेंगे। श्री भद्रकाली शक्तिपीठ के पीठाध्यक्ष सतपाल शर्मा महाराज ने कहा कि देश के सभी मंदिरों को लेकर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए। इस सम्मेलन में काशी से श्रीकांत मिश्रा, गंगोत्री रावल हरीश सहित तीर्थस्थलों के प्रतिनिधियों ने अपने सुझाव भी दिए। इस कार्यक्रम में मेहमानों और सभी संत जनों को केडीबी की तरफ से स्मृति चिन्ह व अंग वस्त्र भेंट किए गए। इस मौके पर आरएसएस के वरिष्ठï प्रचारक अरुण, केडीबी सीईओ पंकज सेतिया, मानद सचिव उपेंद्र सिंघल, केडीबी सदस्य विजय नरुला, एमके मोदगिल, अशोक रोशा, कैप्टन परमजीत सिंह, डा. ऋषिपाल मथाना, युद्घिष्ठïर बहल, प्राधिकरण के सदस्य सौरभ चौधरी उपस्थित थे।
कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर पहली बार देश के प्रमुख धामों के संतों के पड़े चरण:स्वामी ज्ञानानंद महाराज
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में पहुंचने पर संतों का स्वागत करते हुए कहा कि देश के 35 से ज्यादा धामों, तीर्थों और मठों के संतों और विद्ववानों के चरण अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के पावन पर्व पर कुरुक्षेत्र की धरा पर पडऩे से एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है। यह देश में पहला ऐसा मौका है, जब सभी धामों के संतजन एक मंच पर एकत्रित हुए हो। उन्होंने अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के इतिहास और कार्यक्रमों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस महोत्सव के अंतर्राष्टï्रीय गीता सेमिनार में विभिन्न देशों के शोधार्थियों ने 700 से ज्यादा शोध पत्र पड़े गए। पिछले कई वर्षों से आईजीएम को बड़ा स्वरुप मिलने से कुरुक्षेत्र को एक नया मुकाम मिला है। इससे देश-विदेश के लोगों में कुरुक्षेत्र के प्रति महाभारत युद्घ का स्थान होने की बजाए, गीता स्थली के रुप में धारणा बनी है। आज विश्व को महाभारत जैसे युद्घ की नहीं बल्कि पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेशों की जररुत है। इस पावन धरा कुरुक्षेत्र में श्रीस्थाणेश्वर महादेव मंदिर, श्री मां भद्रकाली शक्तिपीठ, गीता स्थली ज्योतिसर, ब्रहमसरोवर, सरस्वती नदी जैसे कई दिव्य और पौराणिक स्थल है। यह पावन धरा जल-थल और नभ में आस्था की दिव्यता है। इस महोत्सव से कुरुक्षेत्र का गौरव फिर से लौट आया है। इस पावन धरा गीता स्थली ज्योतिसर में वट वृक्ष करीब 8 वर्ष पूर्व समाप्त होने की कगार पर था, लेकिन 2 वर्ष पूर्व सरकार के प्रयासों से इस विरासत को सहेजने का काम किया गया है और अब केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत के माध्यम से कुरुक्षेत्र को पर्यटन की दृष्टिï से ओर अधिक गति मिलेगी। कुरुक्षेत्र की धरा पर पहली बार हो रहे देवस्थानम सम्मेलन के प्रमुख धामों के संत और विद्ववान पहुंचे और यहां के इतिहास और संस्कृति का भाव देश के सभी धामों तक पहुंचेगा और इससे कुरुक्षेत्र में अपार संभावनाए बढेंगी।
पौराणिक काल में मंदिर थे देश की संस्कृति, संस्कार और साहित्य का केंद्र:परमात्मानंद
राजकोट के संत परमात्मानंद महाराज ने कहा कि पुरातन काल से ही मंदिरों की आस्था को बरकरार रखने का कार्य हमारे पूर्वजों ने किया, लेकिन गुलामी काल खंड में मंदिरों को क्षति पहुंचाई गई और परंपराओं को लुप्त करने का प्रयास किया गया। इस देश में संस्कृति, संस्कार, न्याय प्राचीन काल में मंदिरों में ही होते थे। इतना ही नहीं मंदिरों में ही कला, साहित्य सेवाओं का संवर्धन भी होता था। इस देश की आठवीं और बारहवीं सदी के शिलालेख में इन तमाम विषयों को देखा गया। लेकिन विडंबना यह है कि आज मंदिर केवल दर्शन का केंद्र बन गए है और लेकिन अव्यवस्था व अन्य कारणों से युवा पीढ़ी मंदिरों से विमुख हो गई है। इसलिए इस अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में सभी धामों से आए संतों से प्रार्थना की जा रही है कि परंपरा में समानता लाना जरुरी है। इसके लिए सामांतर चर्चा होनी चाहिए। अगर समय रहते चर्चा नहीं हुई तो वर्ष 2050 तक देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि युवाओं को प्राचीन संस्कृति से जोडऩे की जरुरत है तथा मंदिरों में स्वच्छता और व्यवस्था पर ध्यान देने की जरुरत है।
कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर हुई धर्म की जीत:छाबड़ा
कुरुक्षेत्र 48 कोस तीर्थ निगरानी कमेटी के चेयरमैन मदन मोहन छाबड़ा ने कहा कि हजारों किलोमीटर लोआस में 6वीं शताब्दी के मिले शिलालेख में कुरुक्षेत्र के इतिहास को दर्शाया गया है। इस धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का इतिहास वामन पुराण में भी मिलता है और इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के बीच के स्थान को कुरुक्षेत्र कहा गया। इस पावन धरा पर भगवान श्रीकृष्ण के कारण धर्म की जीत हुई। इसी पावन धरा पर भगवान वामन का जन्म हुआ। इस धरा को 48 कोस का स्थल भी कहा गया। इस 48 कोस में 182 तीर्थों को सरकार के प्रयासों से विकसित किया जा रहा है।
पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेशों से पूरे विश्व को मिल रहा है शांति का संदेश
प्रसिद्घ मोटिवेटर राजेश कुमार का कहना है कि धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र को महाभारत और परमात्मा का संगम कहा जा सकता है। इस पावन धरा पर 5160 वर्ष पहले पूरी दुनिया को शांति का संदेश मिला और पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेशों का अनुसरण करके आज विश्व को शांति के पथ पर चलने का संदेश मिल रहा है। आज इस अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन से प्राचीन संस्कृति, मंदिरों को संरक्षित करने की जरुरत है। इससे युवा पीढ़ी में चेतना और ज्ञान पैदा होगा।
भारत की आत्मा बसती है तीर्थ स्थलों और मंदिरों में:चंपत राय
श्रीरामजन्म भूमि अयोध्या ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि मंदिरों और तीर्थों के विकास से ही भारत का विकास होगा। इसके प्रयास सरकार की तरफ से लगातार किए जा रहे है और अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण करके रामलला को विराजमान किया गया है। इस देश की आत्मा तीर्थों और मंदिरों में बसती है। इसलिए देश को जीवित रखने के लिए मंदिरों और तीर्थों का विकास जरुरी है। इससे देश की परंपरा भी बची रहेगी। सभी तीर्थ स्थलों पर स्वच्छता पर विशेष फोकस रखना चाहिए तथा मंदिरों में पानी, शौचालय, शैड, बैठने की व्यवस्था जैसी तमाम सुविधाए होनी चाहिए।
कुरुक्षेत्र में 35 धामों के संत पहुंचने से महोत्सव के साथ जुड़ा नया अध्याय:डा. प्रीतम सिंह
आईजीएम मेला प्राधिकरण के सदस्य डा. प्रीतम सिंह ने मेहमानों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज की संकल्पना आज अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन पूरी हुई है। इस सम्मेलन में 35 धामों से संतजन पहुंचे है और इस सम्मेलन के साथ एक नए अध्याय का भी शुभारंभ हुआ है। इस पावन धरा पर दशकों से आईजीएम का आयोजन किया जा रहा है। यह महोत्सव में शुरुआती दौर में 5 दिन का होता था और हजारों लोग पहुंचते थे, लेकिन आज यह महोत्सव 18 दिन का हो गया है और लाखों लोग पहुंचते है। इस महोत्स्व को बड़ा स्वरुप सरकार और गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद के कारण मिला है। अगर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज को आधुनिक युग का स्वामी विवेकानंद कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इनके प्रयासों से ही आज पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेश जन-जन तक पहुंच रहे है।