कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र ) के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि छठ का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बहुत ही धूमधाम से पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की पूजा 7 नवंबर 2024 , गुरुवार को होगी। यह पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। छठ पर्व षष्ठी तिथि से दो दिन पहले अर्थात चतुर्थी से नहाय-खाय से आरंभ हो जाता है और इसका समापन सप्तमी तिथि को पारण करके किया जाता है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। छठ पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं और चौथे दिन उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।
आज खरना में बनेगी चुपड़ी रोटी :
दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। प्रसाद में गन्ने के रस में बनी चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पीठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
तीसरा दिन षष्ठी को दिया जाएगा संध्या अर्घ्य :
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर छठ का प्रसाद बनेगा। प्रसाद में ठेकुआ के अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते हैं। चढ़ावा में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल है। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। व्रती के साथ परिवार, पड़ोसी और रिश्तेदार अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट पर जाते हैं। व्रती तालाब या नदी किनारे भगवान सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देते हैं। छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाएगी। साथ ही रात्रि जागरण का भी विधान है।  सूर्यास्त पर सूर्य को अर्घ्य देने का समय शाम 5 बजकर 29 मिनट है।
चौथा दिन नहाय उषा अर्घ्य से पूरा होगा विधान :
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। व्रती फिर से इकट्ठा होंगे जहां षष्ठी की संध्या में अर्घ्य दिया था। व्रती घर वापस आते समय घर से पहले पड़ने वाले पीपल के पेड़, जिसे ब्रह्म बाबा कहते हैं, की पूजा भी करते हैं। कुछ जगहों पर ऐसा नहीं किया जाता है। पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं। 8 नवंबर 2024 को उषा अर्घ्य का समय सुबह 6 बजकर 47  मिनट है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा के अनुसार छठ पूजा भक्तों को यश और कीर्ति देता है। छठ पूजा में सच्चे मन, श्रद्धा और विश्वास बहुत आवश्यक है। भगवान आपकी श्रद्धा और भावना को ही देखते है और उसके अनुसार फल प्रदान करते है।
पौराणिक महत्त्व :
1. राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा :
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी।  महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। उसी समय  ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा कि  मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया I  उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फल स्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
2. श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना :
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
3. द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत ,:
पौराणिक कथाओं में  द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।
4. दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा :
महाभारत के अनुसार दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।

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