डॉ. राजेश वधवा/कुरुक्षेत्र। मंगलवार को नहाय-खाय के साथ ही लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू हो गया। इस दिन व्रती गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव की पूजा करते हैं। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में चावल-दाल और लौकी की सब्जी ग्रहण करती हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को नहाय खाय होता है। यह पर्व संतान की प्राप्ति और उनकी समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस पर्व में भगवान भास्कर और छठी मइया की पूजा का विधान है। श्री गोगीता गायत्री सत्संग सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष भागवत प्रवक्ता कथा वाचक अनिल शास्त्री ने बताया कि मुख्य त्योहार में से एक त्योहार श्रीसूर्य षष्ठी जिसे छठ महापर्व भी कहा जाता है, भारत के प्राचीन त्योहारों में से एक है.यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है.इस साल छठ पूजा 5 से 8 नवंबर तक मनाई जाएगी। छठ के पहले दिन नहाय खाय की परंपरा होती है। इस दिन व्रती सुबह नहाकर सात्विक भोजन ग्रहण करते है। नहाय खाय के साथ शुरू होकर यह पर्व उषा अर्घ्य के साथ समाप्त होता है। छठ पूजा के इन चार दिनों तक व्रत से जुड़े कई नियमों का पालन किया जाता है। नहाय खाय के दिन व्रती तालाब, नदी या घर पर ही स्नान करते हैं। छठ पूजा में नहाय खाय का विशेष महत्व होता है, इसके साथ ही पर्व की शुरूआत होती है। नहाए खाए के दिन व्रती सात्विक आहार ग्रहण कर खुद को पावन और पवित्र छठ पूजा के लिए तैयार करते हैं। छठ पूजा का मुख्य आकर्षण है महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला व्रत। इस व्रत में महिलाएं बिना जल के उपवास करती हैं और सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा-अर्चना करती हैं। छठ पूजा की शुरूआत तब हुई जब भगवान राम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे थे। उनके सम्मान में लोगों ने उपवास रखा और सूर्य देव की पूजा की तभी से इस पर्व की परंपरा चली आ रही है।