कुवि  में  आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन
कुरुक्षेत्र, 16 जून। 
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉ भीम राव अम्बेडकर अध्ययन केंद्र, के संयुक्त तत्वाधान में  महर्षि वाल्मीकि उनकी कथा और वाल्मीकि समाज विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन रविवार को हुआ  जिसमें मुख्यतिथि के रूप में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रजनीकांत शर्मा रहे, कार्यक्रम के अध्यक्ष हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो कुलदीप चन्द अग्निहोत्री और विशिष्ट अतिथि  हरियाणा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी के संस्कृत प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ चितरंजन दयाल सिंह कौशल रहे, मनोज कुमार द्वारा उपस्थित गणमान्य अतिथियों का स्वागत व अभिनंदन किया।
इस अवसर पर मुख्यातिथि डॉ रजनीकांत शर्मा ने कहा कि भगवान वाल्मीकि का व्यक्तित्व बहुत ऊंचा है  उसके बारे में जितनी चर्चा की जाए उतनी कम पड़ती है भगवान राम के जीवन को लेकर अनेक टिकाए लिखी गई हैं किंतु प्रमाणिक वाल्मिकी जी की रामायण है, वाल्मिकी रामायण में करुणा का भाव समाहित है इसलिए वाल्मिकी जी को करुणा का सागर कहा जाता है। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि समुदाय की स्वतंत्र संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका रही है और मातादीन वाल्मिकी 1857 की क्रांति के प्रमुख नेता रहे है इसके साथ ही गंगू मेहतर जिसने अकेले ही दो सौ से अधिक ब्रिटिशों को मौत के घाट उतारा, इसलिए वाल्मिकी समाज के योगदान को भुलाया नही जा सकता।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने कहा कि भगवान वाल्मीकि ने हमे धर्म का रास्ता दिखाया किंतु क्या हम उस रास्ते को देख सकते है धर्म का रास्ता कठिन है लेकिन कलम के द्वारा इस रास्ते को प्राप्त किया जा सकता है महर्षि वाल्मीकि में धर्म की व्याख्या गहराई से की गई हैं दरसल धर्म का अर्थ कर्तव्य है किंतु समाज में लोगों द्वारा कर्तव्य के त्याग के कारण धर्म का पतन हुआ हैं उन्होंने कहा जो धर्म को छोड़ता हैं धर्म उसे छोड़ देता हैं रिलीजन का अर्थ ईश्वर से जोड़ना हैं मगर धर्म का ईश्वर से कोई संबंध नहीं है इसलिए भगवान वाल्मीकि ने संसार को धर्म का रास्ता दिखाया है जो शाश्वत है अगर उस रास्ते पर चलेंगे तो समाज निरंतर उन्नति करेगा।
कार्यक्रम के अंत में डॉ भीमराव अम्बेडकर अध्ययन केंद्र के सह निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने  उपस्थित गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद प्रकट किया और कहा कि संत जो आचार व्यवहार करता है  उसका अनुसरण आने वाली पीढ़ियां करती है आशा है इस कार्यशाला का लाभ युवा पीढ़ी को मिलेगा।
इस अवसर पर चंडीगढ़ सप्त सिंधु स्टडी सर्किल के संयोजक देवेंद्र सिंह, पंजाब वाल्मिकी अध्ययन केंद्र के संयोजक हरबंस झुम्बा, डॉ अश्विनी गिल और गुरुतेज जोधपुरी आदि मौजूद रहे

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