लाडवा 29 मई
लाडवा ब्राह्मण धर्मशाला में भगवान श्री परशुराम जयंती के उत्सव पर पांच दिवसीय श्रीराम कथा के आज चतुर्थ दिन में सुश्री सुदीक्षा सरस्वती जी के द्वारा जीवन में सुख कैसे प्राप्त किया जाए इस महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाला गया जिसमें उन्होंने बताया कि हमारे पास क्या है? और
हमारे साथ क्या है? हमारे पास हमारे द्वारा कमाया हुआ साधन है और हमारे साथ हमारे कर्मों से उत्पन्न हमारे पाप और पुण्य है हमारे साथ जो है वह आगे आगे भी हमारे साथ जाएगा और जो पास है वह यहीं रह जाएगा।सुखी रहने के लिए संतोषी होना आवश्यक है अपनी ओर देखना है अपने भीतर देखना है दूसरे को नहीं देखना दूसरे के पास कितना है यह नहीं देखना कोई भी कर्म करते समय मन में धारणा होनी चाहिए जो कुछ हो रहा है वह मेरे प्रभु करवा रहे हैं, श्री राम करवा रहे हैं। लंका पार करते समय जब जामवंत जी ,अंगद जी और नल नील ने अपनी असमर्थता दिखाई तो हनुमान जी वहां बिल्कुल चुप रहे उन्होंने कुछ नहीं कहा तब जामवंत जी ने उनको कहा कि राम काज लगि तव अवतारा हे ज्ञानियों में अग्रगण्य , बलशाली, बलवान , बुद्धिमान प्रभु श्री राम के कार्य के लिए ही आपका जन्म हुआ है, आप लंका जा सकते हैं और वापिस आ सकते हैं । इतना सुनकर श्री हनुमान जी तुरंत पर्वताकार हो गए।
जब उनको सुनाई दिया कि उनका जन्म प्रभु श्री राम की सेवा करने के लिए ही हुआ है तो वह तुरंत सीता माता की खोज के लिए विशाल स्वरूप के साथ समुद्र पार करने लगे । रास्ते में अनेक बधाएं आई परंतु भगवान श्री राम के कार्य हेतु कोई भी बाधा उनको रोक नहीं पाई ।
सभी बाधाओं को पार करते हुए वह लंका पहुंचे और वहां से माता सीता की खोज करके प्रभु श्री राम को सूचित कर दिया
उत्तरकांड में प्रभु श्री राम अपनी प्रजा को उपदेश देते हुए कहते हैं इस मानव शरीर को पा कर जिसने राम के नाम को नहीं भजा और भवसागर रुपी समुद्र को पार नहीं किया तो वह मनुष्य आत्महत्या का दोषी माना जाता है सद्गुरु आपको प्राप्त है सब कार्य इस शरीर के माध्यम से ही संभव हो सकते हैं तो इसलिए ही मनुष्य को सभी बंधनों को और कार्यों को छोड़कर केवल और केवल प्रभु भक्ति में ही मन लगाना चाहिए।
जो प्रभु भक्ति करते हैं वे नर इस भवसागर रुपी समुद्र को पार करके प्रभु चरणों में पहुंच जाते हैं