पांडवों ने कुलदेवी माता बाला सुंदरी का पिंडी स्वरूप स्थापित करके मांगा था विजय वरदान
22 अप्रैल को शुक्ला चौदस पर आयोजित होगा मेला
कुरुक्षेत्र, 14 अप्रैल। महाभारत युद्ध आरंभ होने से पहले पांडवों ने अपनी कुलदेवी माता बाला सुंदरी का पिंडी स्वरूप स्थापित कर हथीरा में पूजा-अर्चना की थी। महाभारत कालीन प्राचीन बाला सुंदरी मंदिर में नवरात्रों में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है। पहले नवरात्र से लेकर चर्तुदशी (चौदस) तक श्रद्धालु माता बाला सुंदरी के पिंडी स्वरूप का दर्शन करने के लिए हथीरा पहुंचते हैं। नवरात्रों में चौदस पर विशेष मेले का आयोजन होता है।
धर्मनगरी से 10 किलोमीटर दूर युद्ध भूमि कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने माता बाला सुंदरी का पिंडी स्वरूप स्थापित करके हथीरा का नाम हस्तिपुर रखा था। बाद में माता बाला सुंदरी का मंदिर स्थापित होने से हस्तिपुर से हथीरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
रविवार को छठे नवरात्र पर मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। श्रद्धालुओं ने माता के पिंडी स्वरूप के दर्शन कर मनोकामनाएं मांगी। वहीं मंदिर में भंडारे का भी आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। पुजारी राजेश ने बताया कि दुर्गाष्टमी 16 अप्रैल को पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। इसके साथ ही 22 अप्रैल को शुक्ला चर्तुदशी पर मेले का आयोजन होगा
मिट्टी के टीले के नीचे से निकला था माता का पिंडी स्वरूप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाला डूडर भक्त माता का परम भक्त था। माता ने उसे दर्शन देकर गांव हथीरा में स्थित मंदिर से अवगत करवाया। 1640 ई. पूर्व डूडर भक्त ने गांव हथीरा में पहुंचकर मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ किया। जैसे ही खुदाई का कार्य आरंभ हुआ तो टीले के नीचे माता का पिंडी व छोटा मंदिर निकला जो आज भी स्थापित है। माता ने डूडर भक्त को आशीर्वाद दिया था कि उसका परिवार ही सदियों तक उसकी पूजा करेगा। डूडर भक्त ने माता की अराधना करते समय ही जिंदा समाधि ले ली थी। मंदिर से मंदिर से मात्र 30 गज की दूरी पर उत्तर दिशा में समाधि भी स्थित है। श्रद्धालु माता बाला सुंदरी की पूजा-अर्चना करने के बाद डूडर भक्त की समाधि पर माथा टेकते हैं। वर्तमान में डूडर भक्त से संबंधित पीढ़ी माता की पूजाकर रही है। अब तक कई पीढ़ियां माता की पूजा में समर्पित हो चुकी हैं।
शुभ कार्य में सबसे पहले माता की पूजा
सेवादार रणधीर हथीरा ने बताया कि गांव व आसपास के क्षेत्र में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले माता की पूजा की जाती है। गाय-भैंस का सर्वप्रथम दूध माता को चढ़ाया जाता है तो शादी के बाद नवविवाहित जोड़ा भी दर्शन के लिए मंदिर में पहुंचता है।
नवरात्रों में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
पुजारी सत्यावान ने बताया कि मंदिर में पांडवों द्वारा स्थापित माता की पिंडी शोभायमान है। वर्ष में आने वाले दोनों नवरात्रों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दौरान गांव में मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर में भगवान गणेश, भैरोंनाथ सहित शिवालय में शिव परिवार भी स्थापित किया गया है। यहां बने विशाल हवन-कुंड में समय-समय पर यज्ञ का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जिस प्रकार माता बाला सुन्दरी ने पांडवों की रक्षा करके उन्हें विजय दिलाई वे अपने सभी भक्तों का कल्याण करती।