भारत और अफ्रीका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नई वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में अहम योगदान दे सकते है: अनिल सुकलाल
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रीय हित अब भी सर्वोपरि: संजय पांडा
इंडो पैसिफिक नीति संबंधी मामलों के लिए केयू हर जिम्मेवारी के लिए तैयार: प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा
केयू में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज द्वारा दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का हुआ शुभारंभ
कुरुक्षेत्र, 17 अक्टूबर। दामू रवि आईएफएस, सचिव बहुपक्षीय आर्थिक संबंध, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए एक मजबूत भारत जरूरी है। आर्थिक समृद्धि, बुनियादी ढाँचे का विकास, स्थिरता और शांतिपूर्ण सुरक्षा वातावरण कुछ ऐसे कारक हैं जिन्होंने वैश्विक राजनीति का ध्यान यूरोप से भारत-प्रशांत क्षेत्र की ओर स्थानांतरित कर दिया है। उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य“ का आह्वान पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति की विरासत को दर्शाता है। वे मंगलवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज और अर्थशास्त्र विभाग द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भू-सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास (ऑफ़लाइन और ऑनलाइन) विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के शुभारम्भ अवसर पर बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अफ्रीकी संघ को जी20 के सदस्य के रूप में शामिल करना वर्तमान भारत सरकार के लिए एक कूटनीतिक सफलता है।
उन्होंने कहा कि भारत प्रौद्योगिकी साझा करने, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण करने, सतत विकास लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने, हरित ऊर्जा एवं नीली अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर सहयोग करके भारत-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने आशियान देशों के आपसी सहयोग करने व हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों को आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने और आपूर्ति श्रृंखला बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही। इससे पहले कार्यक्रम का शुभारम्भ सभी अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।
अनिल सुकलाल, एशिया और ब्रिक्स, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सहयोग विभाग (डीआईआरसीओ), दक्षिण अफ्रीका ने बतौर विशिष्ट अतिथि कहा कि भारत और अफ्रीका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक साथ सहयोग कर नई वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में अहम योगदान दे सकते हैं ताकि नई विश्व व्यवस्था पर उत्तरी देशों के नए आधिपत्यों का प्रभुत्व न हो सके जिन्होंने अतीत में वैश्विक दक्षिण का शोषण किया था। उन्होंने कहा कि न्यायसंगत बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के विकास के लिए भारत और अफ्रीका का सहयोग आवश्यक है।
पूर्व राजदूत संजय पांडा, भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रीय हित अब भी सर्वोपरि हैं। प्रत्येक देश को वैश्विक मुद्दों पर अपना रुख अपनाना चाहिए जो उन्हें भविष्य में इतिहास के सही पक्ष में खड़ा कर सके। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सामूहिक व्यवस्था अपनाने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि केयू नीली अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन और रणनीतिक अनुसंधान और नीति संबंधी मामलों के क्षेत्र में इंडो-पैसिफिक यूनिवर्सिटी नेटवर्क बनाने के लिए कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि केयू इंडो-पैसिफिक पर दूसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के साथ, सम्मेलन को वैश्विक स्तर पर संस्थागत और मान्यता दी गई है। प्रोफेसर सोमनाथ ने कहा कि केयू ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, न्यूजीलैंड और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में कीवा पहल में सहयोग करने को इच्छुक है।
जीन-क्लाउड ब्रुनेट, हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग के राजदूत, यूरोप और विदेश मंत्रालय, पेरिस-फ्रांस ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पेरिस यात्रा को दोनों देशों के आपसी संबंधों को मजबूत करने की कड़ी में महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि आईओआरए के नए सदस्य के रूप में फ्रांस को हिंद महासागर क्षेत्र की शांति, स्थिरता और विकास में योगदान देने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में भारत जैसे वरिष्ठ सदस्य से मार्गदर्शन की आवश्यकता है। मोहम्मद खुर्शीद आलम, सचिव समुद्री मामले इकाई, विदेश मंत्रालय, ढाका, बांग्लादेश ने कहा कि भारत ने इंडो पैसिफिक क्षेत्र के लिए अहम भूमिक निभाई है।
फ़िरदौस डाहलॉन (इंडोनेशिया) इंडोनेशिया-मलेशिया-थाईलैंड ग्रोथ ट्राइएंगल (आईएमटी-जीटी), मलेशिया केंद्र के निदेशक ने कहा कि आईएमटी-जीटी देशों की भारत-प्रशांत क्षेत्र में प्रसिद्ध चोक पॉइंट मलक्का स्ट्रेट के पास एक रणनीतिक भौगोलिक स्थिति है। उन्होंने क्षेत्र में कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भारत की भूमिका पर जोर दिया तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आसियान देशों की केंद्रीयता को बरकरार रखने की वकालत की।
डॉ. नोमवुयो एन नोकवे, पूर्व महासचिव, आईओआरए ने कहा कि भारत हमेशा से नए विचारों का स्रोत रहा है, इसलिए अब वैश्विक उथल-पुथल की स्थिति में भी भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने नई वैश्विक व्यवस्था की स्थापना में आईओआरए की सक्रिय भूमिका की अपेक्षा की।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज के निदेशक प्रो. वीएन अत्री ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सेंटर द्वारा आयोजित गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताया। कार्यक्रम में मंच का संचालन डॉ. पलक व डॉ. दिशा छाबड़ा ने किया।
इस अवसर पर कुवि कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा, प्रो. अनिल वोहरा, प्रो. एसके चहल, प्रो. राम विरंजन, प्रो. अमित लूदरी, प्रो. रामनिवास, प्रो. नीरा वर्मा, प्रो. ब्रजेश साहनी, प्रो. रश्मि वर्मा, प्रो. अनिल मित्तल, प्रो. किरण सिंह, प्रो. तेजेन्द्र शर्मा, प्रो. सुनीता सिरोहा, प्रो. अशोक चौहान, प्रो. परमेश कुमार, प्रो. हरदीप आनन्द, डॉ. कुलदीप सिंह, डॉ. अश्वनी, डॉ. अर्चना, डॉ. निधि, डॉ. प्रिया, डॉ. पवन कुमार, डॉ. सलोनी सहित शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।