हरियाणा में झज्जर के गांव चांद सिंह अहलावत आज करीब 83 साल की उम्र में युवाओं जैसा जोश रखते हैं। जिसकी बदौलत वह देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी धाक जमा चुके हैं। उन्होंने करीब 40 से अधिक देशों में जाकर खेल प्रतियोगिताओं में भाग लिया और 700 से अधिक मेडल अपने नाम किए।
चांद सिंह ने खेलों के दम पर टीचर लगे। अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने खेल जारी रखा। वहीं साल1963 में उनके शानदार प्रदर्शन के चलते पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें सम्मानित किया। उनका कहना है कि उनके प्रेरणास्रोत उनके पिता हैं जो खुद खिलाड़ी थे। अपने पिता से प्रेरणा लेकर वे खेल की तरफ आगे बढ़े हैं।
4 हजार खिलाड़ी किए तैयार
झज्जर जिले के गांव डीघल निवासी चांद सिंह अहलावत ने बताया कि वह कई सालों से रोहतक में रह रहे हैं। वह 1960 से खेलों से जुड़े हुए हैं। बचपन से ही खेलों में रुचि रखते थे और 62 साल से खेल से जुड़ें हैं। उन्होंने कहा कि वे 4 हजार से अधिक खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देकर तैयार कर चुके हैं। जिनमें पद्मश्री अवॉर्डी सुनील डबास भी शामिल है।
700 से ज्यादा मेडल उनके नाम
चांद सिंह अहलावत ने बताया कि वे शॉटपुट, डिस्कस थ्रो, जेवलिन थ्रो व हैमर थ्रो के खिलाड़ी हैं। इन चारों खेलों में अब तक करीब 700 मेडल जीत चुके हैं। इनमें से 26 मेडल अकेले वर्ष 2022 के दौरान प्राप्त किए। जिनमें 25 गोल्ड व एक सिल्वर मेडल शामिल है। उनका कहना है कि वे अपना बेस्ट देते हैं।
खेलों की पिता से मिली प्रेरणा
उन्होंने कहा कि खेल की शुरुआत उनके पिता स्व. कैप्टन हरद्वारी सिंह को देखकर हुई। क्योंकि उनके पिता खिलाड़ी रहे हैं। वहीं आजाद हिंद फौज के सिपाही भी रहे। उनके पिता हॉकी के अच्छे प्लेयर थे और कई मेडल जीते। अपने पिता के मार्गदर्शन से चांद सिंह की रुचि खेलों की तरफ बढ़ी और खेल शुरू किए।
62 साल से खेल रहे चांद सिंह
चांद सिंह ने बताया कि वे बचपन से ही खेलों में रुचि रखते थे। जिसके कारण खेलों की तरफ आगे बढ़े और खेलों की बदौलत ही उन्हें बतौर DPE की नौकरी मिल गई। इसके बाद खेलों को और अधिक बढ़ावा मिला। अध्यापन के साथ भी उन्होंने खेल जारी रखा। पिछले करीब 62 साल से वे खेल रहे हैं।
सरकार नहीं देती आर्थिक सहायता
चांद सिंह ने कहा कि मास्टर्स वेटरन गेम में भाग लेने वालों को सरकार आर्थिक सहायता नहीं देती। चाहे राष्ट्रीय हो या चाहे अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता, किसी में भी आने-जाने, ठहरने व खाने का खर्च सरकार नहीं देती। हालांकि 2015 से पहले मिलता था। आर्थिक सहायता नहीं मिलने से कुछ परेशानी भी होती है।
3 एक्सीडेंट हुए, फिर भी नहीं मानी हार
उन्होंने बताया कि उनके तीन बार बड़े एक्सीडेंट हुए। जब वे मानों मौत के मुंह से वापस आए हैं। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और खेल जारी रखा। एक एक्सीडेंट तो 1965 में हुआ, जब वे दिल्ली के स्कूल में टीचर थे। उस दौरान गुरुग्राम से धोला कुआं तक मोटरसाइकिल दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। अचानक कुत्ता आने के कारण वे हादसे का शिकार हुए और उनके कंधे में फ्रैक्चर हो गया था।