भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों बाद भी अपने मूल स्वरूप में जीवित: जय वर्मा
भाषण में शब्दों का चयन महत्वपूर्ण: प्रो. महीरंजन पात्रा
कुवि के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से आयोजित तीन दिवसीय साहित्यिक एवं चित्रकला कार्यशाला के दूसरे दिन छात्रों ने लिया चित्रकला, कविता एवं इलोक्यूशन सहित अन्य विधाओं का प्रशिक्षण
कुरुक्षेत्र, 21 दिसम्बर। किसी भी देश की संस्कृति उसके जीवन मूल्यों आदर्शों, रहन-सहन के तरीकों एवं आस्थाओं और मान्यताओं के रूप में सामने आती है। भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण तत्व अच्छे शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएँ और मूल्य आदि हैं जिसके कारण भारतीय संस्कृति एवं साहित्य का विश्व में बोलबाला है। यह विचार हिन्दी साहित्य क्षेत्र विशेष योगदान देने वाली नॉटिंघम इंग्लैंड से पहुंचे जय वर्मा ने कुवि के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से आयोजित तीन दिवसीय साहित्यिक एवं चित्रकला कार्यशाला के दूसरे दिन बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में हरियाणवी संस्कृति का बोलबाला देखने को मिल रहा है उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति अनोखी अनुपम एवं निराली है यहां की संस्कृति की विविधता की महक पूरे विश्व में फैली हुई है
डॉ. जय वर्मा ने कहा कि अब जबकि सभी की जीवन शैली आधुनिक हो रही है, भारतीय लोग आज भी अपनी परंपरा और मूल्यों को बनाए हुए हैं। भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि हज़ारों वर्षों के बाद भी यह संस्कृति आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति जीवन जीने का सर्वश्रेष्ठतम तरीका है तथा प्रत्येक भारतीय को अपनी संस्कृति एवं साहित्य पर गर्व होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आत्माभिव्यक्ति रचना की पहली प्रक्रिया है। इस अभिव्यक्ति के माध्यम कई हो सकते हैं। शब्द, रंग, रेखाएँ किसी भी माध्यम से, जिसमें रचनाकार को सहजता और सुविधा महसूस हो, रचना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि काव्य सृजन के लिए कविता के लिये प्रतिभा की आवश्यकता होती है। कविता सांकेतिक होती है जिसमें बिम्ब और कल्पना शक्ति उसमें महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
इस मौके बतौर मुख्य वक्ता जीजेयू हिसार के प्रो. महीरंजन पात्रा ने बताया कि किसी भी भाषण को बोलने से पहले शब्दों का चयन अत्यंत आवश्यक है। जब तक हमारे पास अच्छे शब्दों का संग्रह नहीं होगा हम अच्छे वक्ता नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि भाषण में व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं प्रस्तुत करने के तरीका बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कुवि के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि युवा एवं संस्कृति कार्यक्रम विभाग की ओर से तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन ललित कला विभाग एवं सीनेट हॉल में आयोजित किया जा रहा है जिसमें 280 छात्र-छात्राएं भाग ले रहे है। कार्यशाला में डॉ. महासिंह पूनिया ने मुख्यातिथि जय वर्मा को स्मृति चिह्न भेंट कर उन्हें सम्मानित किया।
इस अवसर पर प्रो. विजेन्द्र दहिया, प्रो. महीरंजन पात्रा, प्रो. केपीएस शांते, डॉ. दीपक झा, उपनिदेशक डॉ. गुरचरण सिंह, डॉ. हरविन्द्र राणा सहित प्रतिभागी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
छात्रों ने सीखे चित्रकला एवं कविता के गुण
कुवि के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से सीनेट हॉल एवं ललित कला विभाग में आयोजित तीन दिवसीय साहित्यिक एवं चित्रकला कार्यशाला प्रशिक्षण के दूसरे दिन विद्यार्थियों ने चित्रकला एवं कविता सृजन के गुर सीखे। कुवि के शिक्षण विभागों एवं संबंधित महाविद्यालयों के छात्रों ने दूसरे दिन क्ले मॉडलिंग, पेंटिंग, कोलाज, पोस्टर मेकिंग, कार्टूनिंग, ऑन द स्पाट पेंटिंग, रंगोली एवं फोटोग्राफी सहित कविता सृजन संबंधित संबंधित बारीकियां सीखी। युवा सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य युवाओं में कौशल विकसित करना है ताकि वे स्वयं आत्मनिर्भर बनकर राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान दे सकें।