16 अक्टूबर 2022 का दिन था। बीजिंग का Great Hall of the People एक जैसे कपड़े और एक ही तरह से बैठे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 2300 डेलीगेट्स से भरा था। मौका कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना यानी CPC के सम्मेलन का था। CPC चीन की अकेली पॉलिटिकल पार्टी है। कम्युनिस्ट क्रांति के नाम पर यही पार्टी 1948 के बाद से चीन की सत्ता पर काबिज है। पांच साल में एक बार होने वाले CPC के इस सम्मेलन में चीन के सभी बड़े फैसलों पर मुहर लगती है।

उद्घाटन भाषण देने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मंच पर पहुंचने का समय होने को था, तभी हॉल के बड़े स्क्रीन पर एक वीडियो चलाया गया। वीडियो 15 जून 2020 को गलवान घाटी में चीन और भारत के सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प का था। इसमें चीनी सेना का कमांडर कुई फाबाओ आगे बढ़ते भारतीय सैनिकों की तरफ हथियार ताने नजर आ रहा था। कुई को इस सम्मेलन में बतौर डेलीगेट बुलाया गया था। इस एक सीन ने भारत को लेकर चीन के मंसूबों को साफ कर दिया था।

इसका मुजाहिरा 9 दिसंबर की रात को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ। जहां चीनी सैनिकों ने LAC पार कर भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि भले ही भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को वापस खदेड़ दिया हो, लेकिन ये जिनपिंग का एक स्ट्रैटेजिक मूव है, जो 2027 तक युद्ध में बदल सकता है…

सबसे पहले 2 मैप में भारत-चीन के बीच LAC पर विवाद वाली जगह देखिए…

1949 में चीन के नेता माओ ने कहा था कि हथेली और जो 5 अंगुलियां हैं, उन्हें वापस लेना चाहिए। हथेली का मतलब तिब्बत है, जबकि 5 अंगुलियां हैं- लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, भूटान और नेपाल। 2 साल बाद 1951 में चीन ने तिब्बत पर हमला करके उसे अपने कब्जे में ले लिया।

1962 की जंग से पहले भी 1959 से चीन ने भारत के साथ ऐसी छोटी-छोटी झड़पें करनी शुरू कर दी थीं। इसके बाद 1962 में भारत पर पूरा युद्ध थोप दिया था।

1961 की गर्मियों में चीनी सेना ने मैकमोहन लाइन पर गश्त शुरू कर दी। इस दौरान वे कई जगह भारत के इलाकों में घुसने लगे। हालांकि चीन कहता रहा कि उसकी सेना अपने ही इलाकों में है। जवाब में भारत ने चीनी सैनिकों से आगे जाकर चौकियां बनाने की नीति अपनाई, ताकि उनकी सप्लाई को रोका जा सके और वे वापस लौट जाएं। इसे फॉरवर्ड पॉलिसी कहा गया। 10 जुलाई 1962 को 350 चीनी सैनिकों ने चुशुल में एक भारतीय चौकी को घेर लिया। लाउडस्पीकर पर दोनों ओर से बहस हुई तो सैनिक पीछे चले गए। अगले तीन महीनों तक ऐसी घटनाएं होती रहीं। 20 अक्टूबर को चीनी सेना ने पूरी सरहदी इलाके में भारी हमले शुरू कर दिए और यहीं से भारत-चीन युद्ध की शुरुआत हो गई।

2013 में जिनपिंग राष्ट्रपति बने। इससे बाद वो माओ की हथेली और 5 अंगुलियों की पॉलिसी को तेजी से आगे लेकर जा रहे हैं। 2013 के बाद से लगातार दो-तीन सालों से चीन ऐसी आक्रामक कार्रवाई कर रहा है। चाहे 2017 का डोकलाम विवाद हो, 2020 का गलवान हो या 2022 का अब अरुणाचल विवाद।

ये जो झड़पें हैं, इन्हें छोटे तौर पर नहीं लिया जा सकता है। ये एक ट्रेलर देती हैं कि आने वाले वक्त में चीन भारत से युद्ध की हद तक जा सकता है। इसके कुछ मजबूत वजहें दिख रही हैं…

1. ताइवान के मुकाबले भारत ज्यादा सॉफ्ट टारगेट, मदद जुटाने में लगेगा वक्त

मोटे तौर पर चीन को तीन मोर्चों पर मिलिट्री एक्शन का सामना करना पड़ सकता है। पहला- ताइवान, दूसरा- दक्षिण चीन सागर और तीसरा LAC पर भारत से। इनमें पहले दोनों मोर्चों पर चीन के किसी भी एक्शन पर उसे सीधे अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया की साझा ताकत से युद्ध करना पड़ सकता है।

वहीं चीनी सेना भारत को ‘लोनली गन’ मानती है। यानी भारत पर हमले की स्थिति में उसे अमेरिका समेत पश्चिम देशों का साथ जुटाने में समय लगेगा। ऐसे में अगर चीन को अपनी सेना की ताकत दिखाकर दुनिया को धमकाना पड़े तो भारत ही उसके लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट है।

जिनपिंग की ताजा कोशिश के पीछे इन पॉइंट्स को भी समझिए…

  • सुस्त बाइडेन : अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर जो बाइडेन का होना जिनपिंग के लिए सबसे अच्छी स्थिति हो सकती है। जिनपिंग का मानना है कि बाइडेन भारत के साथ युद्ध की स्थिति में फौरन कोई फैसला नहीं लेंगे।
  • दुर्गम हिमालय : अगर अमेरिका युद्ध में शामिल होने का फैसला भी करता है तो अमेरिकी सैनिकों और इक्विपमेंट को इतनी ऊंचाई वाले स्थानों पर ले जाना इतना आसान नहीं होगा।
  • खफा यूरोप : रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान मोदी सरकार ने सीधे-सीधे अमेरिका और यूरोपीय देशों पर भरोसा करने के बजाय बीच का रास्ता अपनाया। इससे चीन को लगता है कि भारत पश्चिमी देशों को तेजी से लामबंद नहीं कर पाएगा।
  • न्यूट्रल रूस : चीन का मानना है कि भारत से युद्ध के स्थिति में रूस अगर उसका साथ नहीं देगा तो भारत को सीधी मदद भी नहीं करेगा। वैसे भी रूस अभी यूक्रेन युद्ध में फंसा है।
  • दोस्त पाकिस्तान : चीन, पाकिस्तान को भारत के खिलाफ दूसरा मोर्चा खोलने के लिए राजी कर सकता है।

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