सबसे पहले पाकिस्तान में आतंकी हमले की ये 2 कहानी पढ़िए…

पहली कहानी : साल 2007 के बाद से पाकिस्तान की स्वात घाटी में आतंकियों का राज कायम था। खौफ ऐसा की लड़कियां स्कूल जाना बंद कर देती हैं। इन सबके बीच तालिबान को 8वीं में पढ़ने वाली 11 साल की बच्ची चुनौती देती है। पेशावर में नेशनल प्रेस के सामने मशहूर स्पीच देती है, जिसका शीर्षक था- ‘हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टु एजुकेशन’?

बच्ची तालिबानी फरमान के बावजूद पढ़ाई जारी रखती है और दूसरी बच्चियों से भी ऐसा करने को कहती है। यहीं से मलाला युसुफजई नाम की बच्ची तालिबान की नजरों में चढ़ जाती है। 9 अक्टूबर 2012 का दिन था। मलाला अपनी दोस्तों के साथ बस से स्कूल जा रही थी। बस थोड़ी दूर ही गई होगी कि उसमें तालिबानी आतंकी सवार हो जाते हैं। आतंकी पूछते हैं- ‘मलाला कौन हैं’। तभी आवाज आती हैं- मैं मलाला हूं। दूसरी तरफ गोली चलने की आवाज आती है। एक गोली मलाला के सिर में लगती है और गिर जाती है।

दूसरी कहानी : 16 दिसंबर 2014 का दिन था। सुबह 10.30 बजे थे। जगह थी पेशावर का आर्मी स्कूल। तभी पाकिस्तानी सैनिकों के वेश में 7 आतंकी स्कूल के पिछले दरवाजे से अंदर घुसते हैं। ऑटोमेटिक हथियारों से लैस सभी आतंकी अंधाधुंध गोलियां बरसाना शुरू कर देते हैं। आतंकी एक-एक कर सभी क्लासरूम में जाते हैं और फायरिंग करते हैं। कुछ ही मिनटों में स्कूल के अंदर लाशें बिछ जाती हैं। 150 लोग मारे जाते हैं। इनमें 131 बच्चे होते हैं। ये बच्चे पाकिस्तान की सेना के परिवार से थे।

ये दोनों ही हमले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी TTP पाकिस्तान ने करवाए थे। इसी TTP ने एक बार फिर पूरे पाकिस्तान में हमले की धमकी दी है। इस ऐलान के बाद पाकिस्तान में सेना और TTP के बीच खूनी जंग का खतरा बढ़ गया है। भास्कर एक्सप्लेनर में हम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की पूरी जन्म कुंडली के बारे में बताएंगे…

सवाल-1 : क्या है तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जिसने पूरे पाक में हमले की धमकी दी है?

जवाब : साल 2002 में अमेरिकी सेना ने 9/11 आतंकी हमले का बदला लेने अफगानिस्तान में धावा बोलती है। अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई के डर से कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाके में छिप जाते हैं। इसी दौरान पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद की लाल मस्जिद को एक कट्टरपंथी प्रचारक और आतंकियों के कब्जे से मुक्त कराती है। हालांकि कट्टरपंथी प्रचारक को कभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का करीबी माना जाता था, लेकिन इस घटना के बाद स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की खिलाफत होने लगी। इससे कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे।

ऐसे में दिसंबर 2007 को बेयतुल्लाह मेहसूद की अगुवाई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया, लिहाजा संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया। शॉर्ट में इसे TTP या फिर पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है। आतंकवाद की फैक्ट्री कहे जाने वाले पाकिस्तान में अब तक जितने भी आतंकी संगठन अस्तित्व में आए हैं, उनमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सबसे खतरनाक माना जाता है।

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