आईआईएचएस द्वारा गीता के सन्दर्भ में समग्र विकास के माध्यम से वैश्विक कल्याण की अवधारणा विषय पर सेमिनार आयोजित
कुरुक्षेत्र, 30 नवम्बर। कुवि के आईआईएचएस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत गीता के सन्दर्भ में समग्र विकास के माध्यम से वैश्विक कल्याण की अवधारणा विषय पर आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्यातिथि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं हरियाणा उच्च शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा ने कार्यक्रम में ऑनलाइन शामिल होकर कहा कि भगवान श्रीराम ने पाशविक वृत्तियों का संहार करते हुए तथा समाज को दिशा दिखाते हुए मार्गदर्शन भी किया। वर्तमान में समाज की सात्विक शक्ति बनकर आगे आकर कार्य करने की जरूरत है, यही गीता का भी संदेश है। उन्होंने कहा कि वेदों और उपनिषदों का सार ही श्रीमद्भागवत गीता में निहित है। गीता में कहा गया है कि समग्रता का विकास मनुष्य एवं समाज के लिए होता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के समग्र विकास में आवश्यक अवयव का होना भी आवश्यक है।
डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा ने कहा कि शिक्षा के साथ बौद्धिक, मानसिक एवं विचारों तथा मनुष्यता के बारे में सोच का विकास गीता में निहित है। समाज का व्यवहार कैसा हो, दसवें अध्याय में बताया गया है। गीता में कहा गया है कि समाज के लिए कार्य करना एवं समाज में एकात्मकता का भाव विकसित करने के लिए सात्विक शक्ति का होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि शिक्षक सात्विक शक्ति का प्रतीक होता है जो समाजिक समग्रता की दृष्टि से मनुष्य के जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाने का कार्य करता है। ईश्वर को दोबारा इस धरती पर आने की आवश्यकता नहीं है बल्कि समाज द्वारा ही समग्रता की दृष्टि एवं एकात्मकता भाव के माध्यम से सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इससे पहले सेमिनार के संयोजक एवं आईआईएचएस के डॉ. रामचन्द्र ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए सेमिनार की रूपरेखा के बारे में बताया। संस्थान के प्राचार्य प्रो. संजीव कुमार गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि गीता का ज्ञान सार्वजनिक एवं सार्वभौमिक है। यह मानव मात्र के लिए उपयोगी है।
सेमिनार में बतौर विशिष्ट अतिथि प्रो. सचिदानन्द ने कहा कि गीता के 18 अध्याय में हम विषाद योग, कर्म योग एवं सांख्य योग सहित अन्य योगों को अध्याय के रूप में देखते है। मनुष्य के संदेह का निवारण ईश्वर करते है। मार्गदर्शन का मार्ग, गीता हमें सही एवं गलत के बारे में बताती है। गीता सभी उपनिषदों के द्वारा संचित दुग्ध है। मनुष्य की स्वाभाविकता की प्रकृति के अनुसार ही उसका विकास होता है। मनुष्य को प्रज्ञा स्थित होकर ही कार्य करना चाहिए तथा सभी के समान समत्व की भावना रखनी चाहिए। व्यक्ति का प्रमुख उद्देश्य अमृत्व की खोज करना है। संवाद में मनुष्य और ईश्वर आचार शास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। मुख्य वक्ता प्रो. बलराम शुक्ल ने कहा कि गीता का दर्शन वैश्विक है, यह व्यक्ति को खंड में नहीं अखंड रूप में देखने को प्रेरित करती है। आईआईएचएस के द्वारा तीन तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया गया। जिनमें प्रो. रीटा, प्रोफ़ेसर अनीता दुआ एवं प्रो. आनंद कुमार ने सत्र अध्यक्ष की भूमिका का निर्वहन किया।
डॉ जिम्मी शर्मा एवं डॉ वीरेन्द्र पाल ने सत्र उपाध्यक्ष का दायित्व निभाया। डॉ सीडीएस कौशल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इन सत्रों में कुल 33 शोध पत्र पढ़े गए। इस अवसर पर प्रोफेसर अश्वनी कुश, प्रोफेसर परमेश कुमार, डॉ वंदना शर्मा, डॉ सतीश कुमार, डॉ नवप्रीत, डॉ संदीप एवं डॉ करमजीत सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी उपस्थित रहे।