जिस उम्र में उन्हें स्कूल में होना था, दोस्तों के साथ टिफिन शेयर करना था, शरारतें करनी थीं, वो उम्र अब अस्पतालों में, पुलिस के घेरे और कोर्ट के चक्करों के अलावा अपने अनचाहे बच्चों को पालने और लोगों के ताने सुनने में गुजर रही है। उनके चाचाओं, पड़ोसियों और गांव के लोगों ने उनके साथ रेप किया और अब इसकी गुनहगार भी यही बच्चियां ठहरा दी गई हैं।
पुलिस की फाइलों में भले ही ये घटनाएं एक FIR, एक चार्जशीट या एक इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट भर हों, अदालतों में किसी एक फैसले की फाइल भर हों, लेकिन इस सबसे इतर इन जुर्मों-जुल्मों से कुछ जीते-जागते बच्चे दुनिया में आ चुके हैं। दुनिया की नजर में ये पाप हैं।
इनकी मांएं अभी 12-13 साल की बच्चियां हैं, जिन पर ये जिंदगियां थोप दी गई हैं। आइए कुछ ऐसी कहानियों में चलते हैं, जहां कुछ सुंदर नहीं, कोई उम्मीद नहीं, कोई जवाब नहीं, सिर्फ सवाल हैं…
13 फरवरी 2022 को उन्नाव के मौरावां थाने के एक गांव में 11-12 साल की बच्ची अपने घर से देर शाम चीनी खरीदने के लिए निकली। गांव के ही 3 लोग उसे उठाकर पास के कब्रिस्तान ले गए। चाकू की नोक पर उससे गैंगरेप किया और तड़पता छोड़कर भाग गए।
पीड़ित परिवार पुलिस के पास गया, FIR दर्ज हुई, आरोपी गिरफ्तार हुए और कोर्ट-कचहरी के चक्कर शुरू हो गए। न घरवालों ने ध्यान दिया और न ही पुलिस ने जरूरी समझा, बच्ची प्रेग्नेंट हो गई। 4 महीने गुजर गए थे, अबॉर्शन नहीं हो पाया और बीते 20 सितंबर को इस बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया।
मैं उसका घर ढूंढते हुए लखनऊ से करीब 55 किमी दूर उन्नाव के इस गांव में पहुंचता हूं। रास्ता पूछते-पूछते घर तक आया, तो सामने एक साफ सुथरी जगह पर छप्पर पड़ा हुआ था। परिवार कोर्ट में पेशी के लिए जाने की तैयारी कर रहा था। मां चूल्हे के बगल में बैठी रोटियां सेंक रही थी।
दो छोटे-छोटे बच्चे खाने की आस में चूल्हे के सामने ही बैठे थे। नााबालिग रेप पीड़िता भी अपने दो महीने के बच्चे को गर्म कपड़े में लपेटे हुए गोद में खिला रही थी। पिता का चेहरा परेशानियों से वक्त से पहले बूढ़ा हो गया है। वे बार-बार कोर्ट ले जाने वाले कागजात चेक करते हैं।
नाबालिग पीड़िता से पूछता हूं, कैसी हो? क्या सब ठीक है? वो थोड़ी रुआंसी हो जाती है, कहती है- ‘अब घर से बाहर नहीं निकलती। स्कूल भी छूट गया। गांव की सहेलियों से मिलना नहीं होता। जो पहले घर आते थे, अब उन्होंने भी घर आना छोड़ दिया है। कोई आ भी जाए तो घर का पानी भी नहीं पीता। मुझे ऐसे देखते हैं, जैसे मैंने कोई गुनाह किया हो।’
वो बोलते-बोलते चुप हो जाती है। मेरी भी आगे पूछने की हिम्मत नहीं होती।