विश्व आयुर्वेद परिषद, श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय एवं एनआईटी कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को नाड़ी परीक्षण कार्यशाला का शुभारंभ गणमान्य अतिथियों द्वारा भगवान धन्वंतरि को पुष्प अर्पित और दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. ऋषिराज वशिष्ठ ने की और उपस्थित मुख्य अतिथि विश्व आयुर्वेद परिषद के संगठन सचिव प्रो. योगेश मिश्र व गणमान्यों का स्वागत व आभार प्रकट किया। मंच का संचालन डॉ. संजय जाखड़ ने किया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. योगेश मिश्र ने कहा कि इस कार्यशाला में आयुर्वेद के वरिष्ठ लोग मौजूद हैं। जो आयुर्वेद को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाने वाले हैं और सबकी अभिलाषा भी है कि आयुर्वेद विश्व स्तर पर स्थापित हो। आयुर्वेद में संसाधन कम है ऐसा नहीं है यह महत्व का विषय है। भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने मन की विभिन्न तरह की धारणाओं पर बात की है।  अगर मन को साध लिया जाए तो सभी कार्य फलीभूत हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत देश कई वर्षों तक गुलाम रहा, इस कालखंड में हमारे चिकित्सा विज्ञान को मिटाने की हर संभव कोशिश की गई। दूसरे का ज्ञान श्रेष्ठ है यह मानसिकता आज भी बनी हुई है। इस मानसिकता से बाहर निकलकर ही आयुर्वेद को विश्व स्तर पर स्थापित किया जा सकता है। वशिष्ठ अतिथि विश्व आयुर्वेद के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. गोविंद शुक्ला ने कहा कि विश्व भर में स्वास्थ्य की चुनौतियों का समाधान अगर है तो वह सिर्फ आयुर्वेद में है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आयुर्वेद के ब्रांड एंबेसडर हैं जो हर मंच पर आयुर्वेद की बात करते हैं। भावी चिकित्सकों और डॉक्टरों को अपनी भूमिका तय करने की आवश्यकता है। तभी आयुर्वेद के ज्ञान को पुनः स्थापित किया जा सकता है। कुलपति डॉ. बलदेव कुमार ने कहा कि नाड़ी विज्ञान का विषय है। इसे समझाया नहीं जा सकता। यह अनुभव का विषय है। नाड़ी तरंगिणी नाम से एक इलेक्ट्रो मेडिकल उपकरण है। जिसके माध्यम से रोगी के वात, पित्त और कफ को पहचान कर उसके रोग का निदान किया जा सकता है। आयुष विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को पारंपरिक पद्धति के साथ-साथ आधुनिक उपकरणों की भी जानकारी दी जा रही है। इस अवसर पर विश्व आयुर्वेद परिषद के राष्ट्रीय सचिव वैद्य प्रो. अश्वनी यादव ने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएं पुरे देशभर में आयोजित हो रही है। निश्चित रूप से इसका लाभ भावी चिकित्सकों को मिलेगा।  वहीं प्रो. राकेश त्यागी  ने कहा कि गांव के बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म 84 लाख योनियों के बाद होता है और मनुष्य सभी जीवों में श्रेष्ठ है। डॉक्टर इस मामले में श्रेष्ठ हैं जिन्हें मानव सेवा का अवसर मिला है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अंबेडकर स्टडी सेंटर के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. प्रीतम सिंह ने कहा कि देश कोविड काल में आयुर्वेद की सार्थकता को समझ चुका है। आशा है आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति जल्द ही विश्व स्तर पर फैलेगी।  इस अवसर पर एनआईटी कुरुक्षेत्र के निदेशक, प्रो. बी.वी. रमना रेड्डी, हरियाणा विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रांत अध्यक्ष, डॉ. मुकेश अग्रवाल, सह संगठन सचिव, वैद्य के.के. द्विवेदी, कार्यक्रम के संयोजक व आयुष विवि के कुलसचिव डॉ. नरेश भार्गव और आयोजक सह सचिव, डॉ. पुष्कर वशिष्ठ मौजूद रहे।

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