श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के रिसर्च एंड इनोवेशन विभाग द्वारा कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद ठीक हुए मरीजों पर कोविड उपरांत दुष्प्रभावों की जानकारी हेतु एक ऑनलाइन सर्वे किया गया है। इस सर्वे में आयुर्वेदिक औषधियों के सबसे कम दुष्प्रभाव के बेहतर नतीजे सामने आए हैं। कोरोना से ग्रसित जिन लोगों ने एलोपैथी के साथ आयुर्वेदकि उपचार लिया, उसके मुकाबले आयुर्वेदिक औषधी लेने वाले मरीजों में श्वास, हृदय और ब्रेन जैसे रोगों से संबंधित कम लक्षण पाए गए हैं। सर्वे के आधार पर जल्द ही विश्वविद्यालय द्वारा पेपर भी प्रकाशित करवाया जाएगा।
कोरोना महामारी से अब तक विश्व में लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय द्वारा कोरोना महामारी और बाद में भी प्रदेशभर में कोविड मरीजों को महासुदर्शन घनवटी और षडंगपानीय काड़ा का वितरण किया। जो कोरोना महामारी से लड़ने में कारगर सिद्ध हुआ है। उसी के आधार पर कोविड 19 की दूसरी लहर के बाद एक ऑनलाइन सर्वे किया गया। रिसर्च एंड इनोवेशन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. रजनीकांत ने बताया कि इस ऑनलाइन सर्वे में 60 से अधिक लोगों ने भाग लिया। सर्वे पोस्ट कोविड दुष्प्रभाव को जानने के लिए किया गया था। जो लोग महामारी से उभर चुके हैं ऐसे कुछ मरीजों से प्रश्नों के उत्तर भरवाए गए। जैसे कि कोविड के कौन-कौन से लक्षण उनमें पाए गए, उपचार घर में लिया या अस्पताल में इसके साथ ही कोविड होने पर कौन की चिकित्सा पद्धति लाभकारी रही। सर्वे में यह तथ्य सामने आए हैं कि पोस्ट कोविड मरीजों में श्वास रोग 51 प्रतिशत, हृदय रोग 18.8 प्रतिशत और ब्रेन संबंधी रोग 13.2 प्रतिशत मुख्यतया पाए गए हैं। वहीं सर्वे से यह भी जानकारी मिली है कि 21.5 प्रतिशत लोगों ने आयुर्वेदिक उपचार लिया। जिसमें महासुदर्शन घनवटी, षडंगपानीय और आयुष घनवटी जैसी प्रमुख औषधियां थी। जबकि 20 प्रतिशत लोगों ने एलोपेथी और 35.4 प्रतिशत ने आयुर्वेद और एलोपैथी उपचार लिया। उन्होंने बताया सर्वे में यह तथ्य उद्घाटित हुए हैं कि जिन लोगों ने कोविड में केवल आयुर्वेदिक उपचार लिया है उनको श्वास, हृदय और ब्रेन के जैसे रोगों का कम सामना करना पड़ा है। रिसर्च एंड इनोवेशन विभाग के डायरेक्टर डॉ. अनिल शर्मा ने पोस्ट कोविड दुष्प्रभाव पर हुए सर्वे को भविष्य के लिए उपयोगी बताया।
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति दुषपरिणा रहीत है- डॉ बलदेव कुमार
श्रीकृष्णा आयुष विवि के कुलपति डॉ. बलदेव कुमार ने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वदिक उपचार के नामात्र के दुष्परिणाम होते हैं। इन तथ्यों को बहुत बार विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। कोविड-19 महामारी और उसके बाद भी विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई महासुदर्शन घनवटी और षडंगपानीय का प्रदेशभर में कोविड के मरीजों को वितरण की गई। जिसके बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिले थे। देश व प्रदेश के नागरिकों का भी आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ रहा है। जिसमें आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से जुड़े डॉक्टर, भावी चिकित्सक महत्ती भूमिका निभा रहे हैं। केंद्र और प्रदेश की सरकार भी लगातार इस दिशा में काम कर रही है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में असाध्य रोगों से लड़ने की अपार संभावनाए हैं- डॉ. नरेश कुमार
कुलसचिव डॉ. नरेश कुमार ने सर्वे टीम में शामिल डॉ. रजनीकांत, डॉ. मनीष, डॉ. प्रीति, अदीति और राहुल को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आयुष विवि परिवार निरंतर प्रगति के पथ पर चलायमान है। अनेक सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ एमओयू के साथ ही कई विषयों पर शोध कार्य आयुर्वेद में किये जा रहे है। जिसके बेहद सुखद परिणाम जल्द हमारे सामने होंगे।